जालोर/मोदरान | देशभर में आज के समय में बलि के विरोध में
ट्रेंड चल रहा है परन्तु राजस्थान के जालोर जिले के मोदरान के श्री आशापुरी
माताजी मंदिर में नवरात्रि महोत्सव में बलि की परम्परा को विशिष्ट रूप से
कायम रखा गया है।
परन्तु आपको जानकर आश्चर्य होगा कि
यहां किसी निरीह जानवर की बलि नहीं दी जाती है। यहां पर कुम्हडा़ (पेठा)
अर्थात कोळे की बलि दी जाती है। यह परम्परा प्रत्येक नवरात्रि महोत्सव में
दुर्गा अष्टमी यज्ञ में निभाई जाती है।
जोधपुर-भीलडी-पाटण
ब्राडगेज रेल मार्ग पर एक महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन मोदरान जालोर जिले में
आया हुआ है मोदरान रेलवे स्टेशन से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर यहां पर रेलवे
लाइन के पास में चमत्कारिक सुप्रसिद्ध श्री आशापुरी महोदरी माताजी का
भव्य मंदिर है।
श्री आशापुरी माताजी चौहान वंश और जैन भंडारी वंश की
कुलदेवी है। इस मंदिर में दर्शनों के लिए भारत भर के हर राज्य से लोग
दर्शनार्थ आते हैं। श्री आशापुरी माताजी का एक मंदिर पाली जिले के नाडोल
में और गुजरात के भुज जिले में भी है। यहां पर पहले बकरे और पाडे की बलि
लगती थी।
साथ ही सिंदूर और मालीपन्ने का चढ़ावा भी होता था। बाद में एक जैन
संत महात्मा के प्रवचन और उपदेश के आधार पर जानवरों की बलि की इस परम्परा
को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। यहां पर अब नवरात्रि महोत्सव को दुर्गा
अष्टमी पर यज्ञ के समाप्ति पर कुम्हडा़ (पेठा) कोळे की बलि प्रतीक रूप में
दी जाती है।
इन संत के उपदेश से बंद हुई बलि
जैन
आचार्य श्रीमद् विजय तीर्थेन्द्रसूरीश्वरजी, अपरनाम तीर्थविजय महाराज के
उपदेश से विक्रमी संवत 1991 की माघ सुदी 13 शनिवार के दिन श्री आशापुरी
महोदरी माताजी मंदिर पर बलि की परम्परा को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया।
यहां सिंदूर मालीपन्ने की जगह चंदन और केसर का शृंगार किया जाने लगा।
मोदरान
गांव के ठाकुर धौंकलसिंह चम्पावत, भीमसिंह चम्पावत, जैन महाजन पंच और
सैकड़ों ग्रामीणों के हस्ताक्षर लेकर सर्व सम्मति से इस परम्परा को बंद
किया गया है। उसके बाद यहां नवरात्रि महोत्सव में महायज्ञ में कोळे की बलि
दी जाती है।
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