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251 किलो का रोट, उठाने में लगे 20 लोग:20 हजार उपलों पर 48 घंटे सेंकते हैं, चूरमा बनाकर हनुमानजी को लगाते हैं भोग




जैसलमेर - जैसलमेर के रेतीले धोरों पर हनुमान जयंती पर मंदिरों में 251 किलो के रोट का चूरमा बनाकर भोग लगाया गया। प्रसाद को तैयार करने में दो दिन लगे। रोट को 20 लोग मिलकर चौकी पर रखकर खींचकर लेकर गए। इसके बाद अंगारों पर सेंकने के बाद इसका चूरमा बनाया गया।

रामभक्त हनुमान के जन्मोत्सव पर शनिवार को मंदिरों में कई धार्मिक अनुष्ठान किए गए। पोकरण बांकना और सालमसागर तालाब स्थित हनुमान मंदिरों में चूरमे का भोग लगाया गया। रोट के लिए आटे को 190 किलो दूध में गूंथा गया। 110 किलो शक्कर, 170 किलो घी, 30 किलो काजू, किशमिश, बादाम मिलाकर चूरमे का प्रसाद तैयार किया गया। मंदिरों में प्रसाद चढ़ाने के बाद इसे भक्तों में बांट दिया गया।

251 किलो आटा गूंदने में लगे 20 लोग
रोट बनाने वाले कारीगर जगदीश जोशी, ओमप्रकाश बिस्सा और लालभा गुचिया ने बताया कि 251 किलो आटे के रोट को बनाने में 15 से बीस लोगों की टीम लगती हैं। पूरी टीम मिलकर 251 किलो आटे को 190 किलो दूध में गूंथते हैं। इसके बाद 20 हजार उपलों की जलती आग में सेंकने के लिए रखते हैं। इसे पकाने में दो दिन तक मेहनत लगती है।



लोहे के पाइपों के सहारे उठाते हैं इसको
रोट का वजन ज्यादा होने के कारण इसे उठाने में सबसे ज्यादा परेशानी होती है। अंगारों में रखने के लिए लोहे के पाइपों का एक चौकीनुमा स्ट्रक्चर बनाया जाता है। उस पर रोट को रखा जाता है। चौकी के चारों ओर पकड़ने के लिए लकड़ी के बड़े गट्‌ठे बांधे जाते हैं। इसके बाद आग की लपटों में रखा जाता है।

रोट को 24 से 48 घंटे तक सेंकते
रोट करीब 24 से 36 घंटे में सिकता है। उपलों पर आटे के रोट के ऊपर टाट लगाई जाती है। उसके चारों तरफ सूत की डोरी लगाते हैं, जिससे उपलों की राख नहीं लगे। सिकाई के बाद पट्‌टों पर रखा जाता है। पट्टों पर रखकर 15 लोग उठाकर एक तरफ लेकर जाते हैं। इसके बाद रोट से चूरमा बनाया जाता है।

651-651 किलो का चूरमे का प्रसाद
चूरमा बनाने में 110 किलो शक्कर, 170 किलो घी, 30 किलो काजू, किशमिश, बादाम, दो किलो इलायची डाली गई। पूरे मिश्रण से करीब 651 किलो चूरमा तैयार किया गया।

2 दिन पहले शुरू होता है रोट बनाने का काम

हनुमान जयंती के दो दिन पहले ही 251 किलो रोट बनाने का काम शुरू हुआ। पोकरण बांकना और सालमसागर तालाब स्थित हनुमान मंदिरों में कई सालों से इसका भोग लगाया जा रहा है।

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