मृत्युभोज अभिशाप या प्रशासन की मेहरबानी , पाबन्दी के बाद भी मृत्युभोज का आयोजन, प्रशासन पर सवालिया निशान ?
मृत्युभोज अभिशाप या प्रशासन की मेहरबानी
पाबन्दी के बाद भी मृत्युभोज का आयोजन, प्रशासन पर सवालिया निशान ?
जैसलमेर - मृत्युभोज रोकथाम अधिनियम 1960 को लागू करते हुए 1961 में एक सपना देखा गया था कि समाज को इस कुरीति से जल्दी ही मुक्ति मिल जाएगी मगर आज साठ साल बाद भी यह सपना अधूरा है। जागरूकता की कमी कार्मिकों द्वारा कानून को लागू करवाने में कोताही के कारण आज भी मृत्यु भोज जैसी कुरीति जारी हैं। जो दिनों दिन समाज को अंधकार की तरफ लेकर जा रही है परन्तु समाज के कुछ ठेकेदारों की वजह से मृत्युभोज जैसी कुरीतियाँ आज भी कही न कही आमजन के लिए मज़बूरी का सबब बनी हुई है
मामला जैसलमेर के सांकड़ा गांव का है जंहा कुछ युवाओ ने समाज की इस कुरुती को ख़त्म करने के लिए एक अच्छी पहल की है समाज में होने वाले मृत्यु भोज के विषय में अधिकारियो को जानकारी देकर कार्यवाही के लिए हमेशा आगे रहने वाली इस युवा टीम ने इस बार फिर समाज के हित में एक अच्छा कदम उठाया है,
क्या है मामला
समाज के जागरुक साथियों के माध्यम से सूचना प्राप्त हुई है कि जैसलमेर जिले के साकड़ा तहसील के लूणा कला निवासी पूनमा राम पुत्र पिथा राम जाति दर्जी का निधन 5 मई को हो गया था। जिनके पीछे 14 व 15 मई को बड़े स्तर का मृत्यु भोज करने की तैयारी की जा रही थी, इस सामाजिक कलंक से मुक्ति के इस प्रयास में कानूनन सहयोग की एक उम्मीद थी जिसे देख युवा कानून के पास पहुंचे तथा उन्हें लिखित इस विषय के बारे में अवगत करवाया जिस पर त्वरित कार्यवाही करते हुआ प्रशाशन मौके पर पंहुचा और परिवार को पाबन्द किया गया अपरंतू परिवार जनो ने उसके बाद भी मृत्यु भोज का आयोजन कर प्रशासन का रुतबा और डर खत्म कर दिया
अधिकारियों का कहना की त्वरित कार्यवाही की गयी
प्राप्त जानकरी के अनुसार थानाधिकारी आदेश कुमार यादव को जब इस विषय में जानकारी प्राप्त हुई तो तुरंत प्रभाव से टीम के साथ मौके पर पहुंच कर परिवार को पाबंद किया गया जिसमे जिला कलेक्टर ने बताया की जब उन्हें सुचना प्राप्त हुई तो उन्होंने एसडीएम को तुरंत इसे रोकने हेतु कहा गया था परन्तु उसके बाद भी इसका आयोजन कही न कही पुलिस की कार्य प्रणाली पर उंगली उठाते नजर आ रहा है
पाबन्दी के बाद भी आयोजन
सूत्रों के अनुसार पुलिस प्रशासन के पाबन्दी के बाद भी मृत्यु भोज का आयोजन किया गया जिसके अंतर्गत समाज के कही बड़े लोग वह उपस्थित थे जिन्होंने पाबन्दी को नजरअंदाज करते हुआ इसमें शिरकत कर इस प्रथा को बढ़ावा देने में कोई कसर नही छोड़ी, सवाल यह है की पाबन्दी के बाद भी इसका आयोजन सही था अथवा समाज या पंचो के डर से इसका अयोजन किया गया था, आज भी यह कुप्रथा समाज को खोखला करने में पीछे नहीं है वही कुछ लोग इसे बढ़ावा देने में हर वक्त आगे रहते है
युवाओं का कहना हमे मिल रही धमकियां
युवाओं के इस कार्य की सहारना करना तो दूर वही लोगो द्वारा उनके इस कार्य को लेकर उन्हें बार बार धमकी दी जा रही है, शंकरलाल ने बताया की वह पिछले काफी समय से इस समाज के कलंक को ख़त्म करने के लिए वे हमेशा ही प्रयासरत रहते है परन्तु समाज के कुछ लोग उनके इस कार्य से नाराज होकर उन्हें धमकाते रहते है, पूर्ण समाज इसके विपक्ष में है परन्तु समाज के कुछ गिने चुने लोग और पंचो सहित वर्चश्व धारी लोग इन्हे मजबुरकर मृत्युभोज के लिए दुष्प्रेरित कर रहे है
देखिये किसने क्या कहा
14 मई शाम और 15 मई की सुबह गांव के पटवारी और ग्राम विकास अधिकारी दोनों मौके पर थे फिर आयोजन होना संभव नहीं है
- उपखण्ड अधिकारी, पोकरण
सुचना पर मैं स्वयं मौके पर गया उन्हें पाबंद भी किया और उसके बाद मैंने कम से कम 5 बार मौके पर गया मुझे वह ऐसा कुछ नहीं मिला
-आदेश कुमार यादव
थानाधिकारी सांकड़ जैसलमेर
मुझे सुचना मिलते ही मैंने तुरंत एसडीएम को फोन करके सुचना देदी थी और परिवारजन को पाबंद करने के आदेश दिए थे
-डॉक्टर प्रतिभा सिंह
जिला कलेक्टर जैसलमेर
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