फारुख शेख दीवाना: संगीत से पशु-पक्षियों तक पहुँचाने वाले अद्भुत कलाकार का निधन
जालोर (उजीर सिलावट) अपनी सुरीली आवाज और अनोखी गायकी के लिए प्रसिद्ध फारुख शेख दीवाना अब हमारे बीच नहीं रहे। जालोर के संगीत जगत में अपनी खास पहचान बनाने वाले इस कलाकार ने न केवल इंसानों के दिलों में जगह बनाई, बल्कि पशु-पक्षियों तक को अपने संगीत से मोहित किया। उनके निधन की खबर से पूरे क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई है।
संगीत का प्रकृति से अनूठा जुड़ाव
फारुख शेख दीवाना का जन्म किले की घाटी, जालोर में हुआ था। उनके पिता गनी मोहम्मद जी सिलावट और माता खतीजा बानू के आंगन में उन्होंने बचपन से ही संगीत की दुनिया में कदम रख दिया था। वे न सिर्फ इंसानों के लिए गाते थे, बल्कि उनका संगीत पक्षियों और पशुओं को भी आकर्षित करता था। स्थानीय लोगों के अनुसार, जब वे रियाज़ करते थे, तो आसपास के पेड़ों पर पक्षी आकर बैठ जाते थे और उनके सुरों के साथ गुनगुनाने लगते थे।
पशु-पक्षियों के लिए संगीत का अद्भुत प्रयोग
फारुख शेख दीवाना ने संगीत को केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे प्राकृतिक जीवन से भी जोड़ा। वे अक्सर खुले मैदानों, बगीचों और पशुशालाओं में जाकर गाते थे, जहाँ उनके सुरों पर पशु-पक्षियों की खास प्रतिक्रिया देखने को मिलती थी। उनके संगीत को सुनकर गायें शांत हो जाती थीं, पक्षी चहचहाने लगते थे, और वातावरण एक अलग ऊर्जा से भर जाता था।
लोकप्रियता और सम्मान
उनकी इस अनोखी कला के कारण स्थानीय स्तर पर उन्हें "संगीत के सच्चे साधक" के रूप में जाना जाता था। वे जालोर और आसपास के संगीत प्रेमियों के बीच बेहद लोकप्रिय थे। संगीत को प्रकृति के करीब ले जाने का उनका यह प्रयास उन्हें अन्य कलाकारों से अलग बनाता था।
अचानक निधन से शोक की लहर
फारुख शेख दीवाना के निधन से संगीत प्रेमियों को गहरा आघात लगा है। उनके परिवार, मित्रों और प्रशंसकों ने इस दुखद घटना पर शोक व्यक्त किया है। उनके जाने से न केवल इंसान, बल्कि वे पशु-पक्षी भी उदास हो गए होंगे, जिनके लिए वे अपने सुरों का जादू बिखेरते थे।
जन्नतुल फिरदौस में ऊँचा मकाम मिले
उनकी यादें और उनका संगीत हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे। सभी ने अल्लाह से दुआ की कि उन्हें जन्नतुल फिरदौस में आला से आला मकाम अता हो।फारुख शेख दीवाना की इस विरासत को संगीत प्रेमी हमेशा संजोकर रखेंगे, और उनके सुरों की गूँज सदा बनी रहेगी।