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लेखिका रेशू त्यागी |
एक आइना भारत /अशोक राजपुरोहित
पाली:आज का दिन मातृ दिवस अर्थात मदर्स डे के रूप में मनाया जा रहा है, बच्चे अपनी मां के लिए कई तरह के तोहफे लेकर आ रहे हैं और अपनी मां को खुश करने की कोशिश में लगे हुए हैं,परन्तु हममें से कितने बच्चे यह जानते हैं, मां की असली खुशी तोहफे में नहीं बल्कि उसके बच्चों में है, उसे तोहफे की नहीं बल्कि आपके वक्त की जरूरत है। जब एक महिला गर्भधारण करती है, उस वक्त घर परिवार के बाकी सभी लोगों को खुशी तो होती है लेकिन उससे ज्यादा किसी की खुशी का ठिकाना नहीं होता है, दुनिया में कोई भी महिला ऐसी नहीं होगी जो यह नहीं चाहती होगी कि वह मां बने शादी के बाद हर महिला का सपना होता है कि वह पत्नी,भाभी और बहू के अलावा एक अच्छी मां भी बने। मां इस शब्द में इतनी ममता भरी है कि इस एक शब्द को सुनने के लिए एक मां अपने शिशु को 9 महीने पेट में रखती है, जब एक बच्चे को मां जन्म देती है तो उस वक्त सिर्फ नवजात का ही जन्म नहीं होता, बल्कि मां का भी दूसरा जन्म होता है क्योंकि प्रसव पीड़ा इतनी कष्टदाई होती है कि उसे सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। लेकिन उसके बाद भी हर मां इस पीड़ा को हंसते-हंसते सहने के लिए तैयार रहती है, नवजात के जन्म के बाद कह सकते हैं कि एक महिला में उसका अपना कुछ नहीं रह जाता। अपना दिन अपनी रात सब कुछ अपने बच्चे के नाम कर देती है, कभी रोते बच्चे को लोरी सुना कर सुलाती है तो कभी अपने आंचल का दूध पिला कर उसकी भूख को शांत करती है। अनगिनत बार उसके गीले कपड़ों को बदलती है, एक मां की अपनी नींद तो कहीं खो सी जाती है, बस वह ज्यादातर अपने बच्चे को चैन की नींद सोते देख कर ही सुकून पा लेती है। नींद में या खेल के वक्त अगर कभी बच्चा गलती से गिर जाए तो इतना दर्द उस बच्चे को नहीं होता जितना मां को होता है, मां तो वह है जो अपने बच्चे के हंसने पर खिलखिलाती और उसके रोने पर उससे भी ज्यादा रोती हैं,मां का वर्णन, मां की गाथा इतनी बड़ी है कि उसके लिए शब्द छोटे पड़ जाते हैं। बच्चा थोड़ा सा बड़ा हुआ तो फिर मां अपने बच्चों को संस्कार के पाठ पढ़ाती है। घर में वह अपने बच्चों की सबसे पहली शिक्षक बन जाती है,मां का प्यार मां का दुलार बच्चों को सिर्फ बचपन में ही ज्यादा चाहिए होता है। बड़े हो जाते हैं तो फिर उनके नए-नए रिश्ते जुड़ जाते हैं तो फिर ऐसे में मां भी एक रिश्ता बन कर रह जाती है। लेकिन एक मां के लिए बच्चा कितना भी बड़ा हो जाए वह अपने बच्चे को हमेशा बच्चा ही समझती है। उसी तरह उसकी हर जरूरतों का ख्याल रखती हैं, बड़ा होने के बाद उसके बच्चे की खुशी हर किसी को दिख जाती है लेकिन उसकी परेशानी उसका गम उसके बिना बताए अगर किसी को समझ में आता है तो वह सिर्फ मां ही होती है। लेकिन कई बार शादी होने के बाद बच्चों को माता-पिता बोझ लगने लगते हैं या फिर दूसरे राज्य में नौकरी होने की वजह से मजबूरी में कई बच्चे अपने मां-बाप को वृद्ध आश्रम भेज देते हैं, जरा सोचिए अगर इसी तरह आप के मां बाप भी आपको बचपन में बोर्डिंग स्कूल भेज देते तो आपको कभी माता पिता का प्यार ही नहीं मिल पाता, मां के दूध का कर्ज तो कोई इंसान कभी भी नहीं चुका सकता, पर हो सके तो अपने मां बाप को अपने साथ रखें ,क्योंकि उन्हें आपके बड़े-बड़े उपहारों की जरूरत नहीं सिर्फ आपके प्यार की जरूरत है। वही प्यार जो उन्होंने आपको बचपन में दिया था अगर उसका 10% प्यार भी आप उन्हें कर पाए, तो समझ लीजिए भगवान को आपने धरती पर ही पा लिया।
मां के लिए चंद लाइनों में हम तो बस यही कहना चाहेंगे तुम हो तो मैं हूं, तुम्हारे सिवा मैं कुछ भी नहीं मां, तुम प्रेरणा तुम हिम्मत तुम ही मेरी दुर्गा हो मां।
हे मां पालनहारा मुझे रचने वाली, तुम तो खुद मुझे लिखने वाली हो मां।मेरे चेहरे की हंसी पर फिदा है करोड़ों, मेरे गम को तेरे अलावा किसी ने ना जाना है मां
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