कचरे के ढेर में जीवन तलाश रही गौमाता दर दर की ठोकरे खाने को मजबूर

कचरे के ढेर में जीवन तलाश रही गौमाता दर दर की ठोकरे खाने को मजबूर
(कैलाश सिंह राजपुरोहित)
- गाय माता की दयनीय स्थिति चिंताजनक है, समाजसेवियों को आगे आकर पहल करनी चाहिए - राजपुरोहित
सिवाना -- कहने को तो हमारे देश में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। यही पवित्र गाय माता अपनी प्राणरक्षा के लिए कूड़े के ढेर में कचरा और प्लास्टिक खाने को मजबूर है।कैसी विडंबना है कि देवताओं को भी भोग और मोक्ष प्रदान करने की शक्ति रखने वाली गौमाता आज चारे के अभाव में कूड़े के ढेर में कचरा और प्लास्टिक की थैलियों से अपना पेट भरने को मजबूर है।हमारे देश में गाय को पूजा जाता है, लेकिन यह विडंबना ही है कि आज गाय की घोर उपेक्षा की जा रही है। उपखण्ड क्षेत्र भर में जगह-जगह लगे प्लास्टिक के ढेर पर मुंह मारती गायों के दृश्य आम हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में गायों की संख्या का घटना चिंताजनक है। आज घरों में गाय की जगह कुत्ते के पालन पर जोर है। घर मे कुत्ते पालकर उसकी सेवा की जा रही है। उसे दिन में दो चार बार नहलाया जाता है। समय पर रोटी पानी देने सहित पूरी तरह से उसका ख्याल रखा जाता है। पर माता कही जाने वाली गाय आज कचरे के ढेर में अपना जीवन तलाश रही है।
कुनाल वोहरा ने 'प्लास्टिक काऊ' नाम की फिल्म बनाई है। यह फिल्म कई भाषाओं में बनी है। सबसे क्रूर विडंबना यह है कि शहरों में लोग गाय के बजाय कुत्ते पालना पसंद करते हैं। कुछ घरों में पालतू कुत्ते बिस्किट और मिठाई खाते हैं और कहीं-कहीं गायें कूड़े के ढेर में खाना ढूंढती हैं। सड़क किनारे फेंकी गई खाद्य वस्तुओं के साथ-साथ प्लास्टिक खाने से कई गायों की दर्दनाक मौत हो जाती है।
आजकल बहुत पढ़े-लिखे व संपन्न लोग अपने घर में कुत्ता पालते हैं। घर में कुत्ता पालने का चलन विदेशी संस्कृति की ही देन है। आज गाय दर-दर की ठोकरें खा रही हैं। गाय की हालत बहुत अधिक दयनीय होती जा रही है। गाय पर राजनीति करने वाले नेता लोग भी अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने के लिए गाय के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाकर इति श्री कर देते है। लेकिन वास्तविकता पर कोई ध्यान नही दिया जाता।
एक समय था, जब लोग घर के द्वार पर लिखते थे- 'गाय स्वर्ग और मोक्ष की सीढ़ी है' , 'अतिथि देवो भव'! , 'शुभ लाभ'! , 'स्वागतम'! लेकिन अब उसकी जगह लिखा हुआ होता है, 'कुत्तों से सावधान'।
प्राचीनकाल से ही गाय भारतीय जीवन का एक अभिन्न अंग रही है, परंतु अफसोस आज उसी मां को अनेक दुर्दशाओं का सामना करना पड़ रहा है। गाय हिन्दू धर्म में पवित्र और पूजनीय मानी गई है। ऐसे में यह सवाल विचारणीय हो जाता है कि आखिर वजह क्या है कि गाय आज सड़कों पर मल, गंदगी व प्लास्टिक खाने को मजबूर क्यो है..?
ऐसा माना जाता है कि गाय में हमारे सभी देवी-देवता निवास करते हैं। इसी वजह से मात्र गाय की सेवा से ही भगवान प्रसन्न हो जाते हैं तो इसलिए कुत्ते नहीं, गाय पालिए। भोजन से पहले गाय के लिए भोजन का कुछ हिस्सा निकालें। किसी शुभ अवसर पर कम से कम 100-500 रुपए या अपनी सामर्थ्य अनुसार किसी भी निकटतम गौशाला में दान अवश्य दें ताकि गौशाला में गायों का पालन-पोषण अच्छी तरह से हो सके। वही निकटतम गौशाला में गायों के लिए चारा डाल सकते हो तो ओर भी अच्छी बात है।
गायों की दयनीय स्थिति– वर्तमान समय में गायों की स्थिति बडी दयनीय है। आज गाय को सिर्फ दूध निकालने के बाद उन्हें सडक पर आवारा पशुओं की तरह छोड दिया जाता हैं। आवारा पशुओं की तरह की आज कुछ लोग गायों को डंडो से भी मारते नजर आ जाते हैं। जहाँ देखो गाये कचरे में मुँह मारती, गलियों सहित बाजारों में धमा-चौकडी मचाते, बीच सडकों पर झुण्ड बनाकर बैठे, कई बार वाहन चालकों के अचानक सामने आते देखा होगा। आज के हालात में सबसे बड़ा कटु सत्य है कि वेद पुराणों से प्रेरित होकर गायों को पूजा करने वाला मानव ही आज गाय की दयनीय हालत का मुख्य जिम्मेवार बनता जा रहा है।
सभ्यता व संस्कृति का आधार है गाय -
हिन्दू परम्परा के अनुसार गाय समुद्र मंथन से उत्पन्न हुई माना गया है। भविष्य पुराण में कहा गया है कि गाय स्वर्ग और मोक्ष की सीढ़ी है। गाय, गोपाल, गीता, गायत्री तथा गंगा भारत की सभ्यता और संस्कृति का आधार हैं। भारत में गाय को देवी का दर्जा प्राप्त है। पुराणों के अनुसार गाय के भीतर सभी देवताओं का वास माना गया है। भारतीय समाज में यह विश्वास है कि गाय देवत्व और प्रकृति की प्रतिनिधि है इसलिए इसकी रक्षा और पूजन कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। हिन्दू धर्म में गाय को पवित्र माना जाता है और इसे मारना पवित्रता का अनादर समझा जाता है। हिन्दू धर्म में गाय की पूजा की जाती है, क्योंकि गाय में करोड़ों देवी-देवताओं का वास माना गया है। हिन्दू धर्म में तो गाय के महान और अनमोल गुणों को देखते हुए उसे मां, देवी और भगवान का दर्जा दिया गया है। गाय वैदिक कल से ही भारतीय धर्म, संस्कृति, सभ्यता और अर्थव्यवस्था का प्रतीक रही है। अथर्ववेद में गाय को 'धेनु: सदनम् रमीणाम' कहा गया है और इसे धन-संपत्ति का भंडार कहा गया है।
आदिकाल से रही है गाय की महिमा
भारत भूमि में गाय की महिमा आदिकाल से रही है। हर हिन्दू घर में सबसे पहली रोटी गाय की और दूसरी रोटी कुत्ते की निकाली जाती थी। घर में बनने वाली पहली रोटी गायों को खिलाकर ही परिवार स्वयं कुछ खाता था।
कचरे में जीवन तलाश रही गाय माता-
कस्बे व गांवों में सैकड़ों की संख्या में बेसहारा गौवंश घूम रहे हैं। गायों के लिए आज सड़कें व कूड़े के ढेर भोजन स्थल बने हुए हैं। रात के समय सड़कों पर इनके बैठे रहने पर ये दुर्घटनाओं का कारण भी बन रहे हैं। कड़वा है, लेकिन सच है कि आज सड़कों पर आवारा घूमती व भूखी गाय कचरे से गंदगी व पॉलिथीन खाने को मजबूर हैं। सुख-समृद्धि की प्रतीक रही भारतीय गाय आज कूड़े के ढेर में कचरा और प्लास्टिक की थैलियां खाती दिखती हैं। मां के दर्जे वाली गाय की दुर्दशा दिनोदिन बढ़ती जा रही है। वही दुःख की बात तो यह है कि गायों के लिए जहां गौशाला बनी हुई है वहां भी गौमाता इधर-उधर भटककर कचरा कहकर अपना पेट भरने को मजबूर है।
गाय का दूध मां के दूध के गुण के समतुल्य-
आर्य समाज के संस्थापक, आधुनिक भारत के महान चिंतक, समाज-सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती 'गौ करुणानिधि' में कहते हैं कि गाय मनुष्य के लिए अत्यंत मूल्यवान है और गाय का दूध पौष्टिक तथा घी और दही स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। गाय का दूध मां के दूध के गुण के समतुल्य होता है।
गाय के शरीर में सभी देवता करते है वास-
हिन्दू धर्म और संस्कृति के अनुसार गाय के शरीर में 33 करोड़ देवी-देवता वास करते हैं एवं गौ-सेवा करने से एकसाथ 33 करोड़ देवता प्रसन्न होते हैं। गाय के बिना हिन्दू संस्कृति और भारतीयता पूरी तरह अपूर्ण है।
बैल की कम होती उपयोगिता-
भारत एक कृषि प्रधान देश है और बैल हल खींचने के काम आते हैं। अब किसान बैलों की जगह कृषि कार्य में ट्रैक्टर की सहायता लेने लगा है। गाय से बछड़ा, बछड़े से बैल व बैल से खेती की जरूरतें पूरी होती थीं। जब तक ट्रैक्टर की खोज नहीं हुई थी, उस समय तक बैलों द्वारा ही खेती की जाती थी। लेकिन अब इनका स्थान आधुनिक उपकरणों के ले लेने से बैल भी आवारा घूम रहे है। जिनको इधर उधर भटककर अपनी भूख मिटानी पड़ती है।
दम तोडती गायों के लिये जिम्मेदार कौन–
वर्तमान समय में आवारा पशुओं की तरह घूमते गौवंश का जिम्मेदार किसे माने गौ पालक जिसने गाय को दूध देने के समय तो घर में रखा लेकिन जैसे ही गाय ने दूध देना बन्द किया उसे रोड पर छोड दिया तो कुछ गायों को पालने वाले सिर्फ गाय का दूध निकालकर उन्हें सडक पर भूखी-प्यासी छोड देते हैं। जिसकी वजह से आज सडक पर पडे कचरों पर गायें अपना मुंह मारती रहती हैं। पंजीकृत गौशाला चलाने वालों को इसका जिम्मेदार माने जो गायों की सेवा करने के नाम पर सरकार से सहायता ले रहे हैं। वही आज लगभग हर ग्राम में गौशाला बनी हुई है, लेकिन फिर भी गौमाता आवारा घूमने को मजबूर है।
गौमाता की इस दयनीय दशा को देखते हुए पत्रकार कैलाश सिंह राजपुरोहित ने कुछ समाजसेवियों व ग्रामीणों से विशेष चर्चा की, 

क्या कहना है उनका आप भी जाने।
इनका कहना-
आज गायों की स्थिति दयनीय है। जगह जगह पड़े कचरे के ढेर पर गायें घूमती रहती है। इसके लिए हम सभी को कचरा इधर उधर नही फेकना चाहिए ताकि गायें उस कचरे से प्लास्टिक वगैरह नही खाएं, जिससे गायों की स्थिति में सुधार आएं।
- ललीत ओझा, सामाजिक कार्यकर्ता
गांव में गायें सड़कों पर भी इधर उधर घूमती रहती है। जिसकी वजह से कई बार गायें दुर्घटना की चपेट में आ जाती है। गायों को इससे बचाने के लिए गौशाला के माध्यम से समाजसेवियों को आगे आकर उचित व्यवस्था करनी चाहिए।
गणपत सिंह राजपुरोहित  - स्थानीय नागरिक
गायों को हमारे देश मे माता कहा गया है। लेकिन उसी गौमाता की दयनीय स्थिति चिंता का विषय है । इसके लिए समाज के प्रबुद्धजनों को आगे आना चाहिए।
बहादुर सिंह राजपुरोहित - समाजसेवी
गांव व शहर  में गौशाला होते हुए भी गाय इधर उधर सड़कों पर व कचरे में घूमती हुई प्लास्टिक खाने को मजबूर है। यह बहुत ही दु:खद है। समाजसेवियों व गौसेवकों को आगे आकर गौशाला में उचित चारे पानी की व्यवस्था करनी चाहिए।
चैनाराम लौहार - सामाजिक कार्यकर्ता 
और नया पुराने