चाकसू/भारत की ग़रीबी मिटाने में भगवद्गीता की भूमिका।

भारत की ग़रीबी मिटाने में भगवद्गीता की भूमिका।

एक आईना भारत

आज भारत ही नहीं, विश्व के कई देश ग़रीबी के संकट से गुजर रहे हैं। भारत की आजादी के बाद से आज तक भारत से गरीबी का उन्मूलन नहीं हो सका।भारत सरकार अपने सभी संसाधनों का प्रयोग ग़रीबी का उन्मूलन में करती  आ रही है। लेकिन समस्याएं जस की तस है। इस समस्या को मिटाने में महाभारत युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया गीता का उपदेश कारगर सिद्ध हो सकता है। भगवान कृष्ण ने गीता में कर्मयोग को श्रेष्ठ बताया है। गीता का यह श्लोक 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संङोग्अस्त्वकर्मणि' ।।कृष्ण ने कहा है कि हे भरत श्रेष्ठ!तू कर्म कर। तेरा अधिकार ही तेरा कर्म है। तू कर्म करता जा, ईश्वर अपने आप फल देता रहेगा।तू पहले काम कर फिर धर्म कर अर्थात कर्म ही सबसे बड़ा धर्म है। मनुष्य का प्रथम अधिकार उसका कर्म है। भगवान कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया कि 'योगस्थ:कुरु कर्माणि संगंत्यक्त्वा धनञ्जय । सिद्धयसिदद्धयो सभी भूत्वा समत्वं योग उच्यते।। अर्थात हे मनुष्य तू आसक्ति (आलस्य) का त्याग कर और मन लगाकर कर्म कर।कर्म करने से व्यक्ति बुद्धिमान, धनी और सभी सुखों से सम्पन्न होगा। आज भारतवर्ष को श्री मद्भगवद् गीता के ज्ञान की अतिआवश्यकता है। भारत से गरीबी को कर्मयोग के द्वारा ही दूर की जा सकती है। सतयुग में मनुष्य सुखी, धनी तथा स्वस्थ जीवन व्यतीत करते थे। कोई भी व्यक्ति गरीब नहीं होता था क्योंकि सभी व्यक्ति कर्म करते थे। सतयुग में मनुष्य कर्म और धर्म मनोयोग से करते थे।त्रेता युग में भारत वर्ष की एक चौथाई आबादी ने कर्म करना छोड दिया।इस युग में मनुष्य ने अपने कर्म भाव को छोड दिया और आलसी और लापरवाह होने लग गया, जिससे देश में अव्यवस्था फैलने लग गयी।चौरी, लूटपाट,हिँसा आदि की घटनाओं में वृद्धि होने लगी।द्वापर युग में आधी आबादी ने कर्म और धर्म को छोडकर आलसी और बेपरवाह हो गया परिणामस्वरूप भारत की आधी आबादी अशिक्षित, बेरोजगार, हिँसा करने वाली तथा भ्रष्टाचारी हो गयी।इसी अवस्था को देखकर भगवान कृष्ण ने 'गीता' का उपदेश देकर कर्म तथा धर्म करने का ज्ञान दिया।कलयुग में भारत की आबादी का ज्यादातर भाग कर्महीन होकर अशिक्षित, ग़रीब,बेरोजगार और धर्महीन हो गया। आज भारत में जो पिछले एक हजार सालों से जो। हालात है, उसका कारण कर्म का त्याग करना मुख्य कारण है। व्यक्ति ने मनोयोग से कर्म करना छोड दिया जिससे भारत में भ्रष्टाचार, अनैतिकता, आतंकवाद, गरीबी, कुपोषणता, बेरोजगारी और हिंसा की घटनाओं में वृद्धि होने लगी है। सरकारों द्वारा निशुल्क खाद्यान्न, पानी, बिजली, मकान और बुनियादी सुविधाओं को देने से व्यक्ति आलसी और लापरवाह होने लग गया है,जिससे देश की अर्थव्यवस्था गिरती जा रहीं हैं। हम सभी को मिलकर सरकारों से निशुल्क बुनियादी सुविधाओं को लेने के बजाय कर्मशील बनकर अपने परिश्रम से अपने लिए बुनियादी सुविधाओं को जुटाना होगा तथा अपने कमाये गये धन में से कुछ कर सरकार को देकर अपने और अपने देश को विकास की ओर ले जाने में सहयोग प्रदान करें। लेकिन यह तभी संभव होगा जब श्री मद्भगवद् गीता का ज्ञान हर भारतीय तक पहुंचे।इसके लिए हम सभी को तथा सरकारों को प्रयास करना है कि प्रथम कक्षा से ही पाठ्यक्रम में गीता पढायी जावे।कुछ राजनैतिक दलों  तथा संगठनों द्वारा इस महान ग्रन्थ को धर्म का चोला पहनाकर प्रत्येक भारतीय को इसकै ज्ञान से दूर करने का प्रयास किया जाता रहा है लेकिन गीता केवल एक धर्म से बंधी हुई नहीं है बल्कि सभी धर्मों का आधार है। कर्म सभी धर्मो, जातियों तथा व्यक्तियों का प्रथम अधिकार और कर्तव्य है। 

                 शंकर लाल बेनीवाल 
                      अध्यापक
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