राजस्थानी भाषा का अस्तित्व :मुकेश राजपुरोहित
एक आईना भारत /अशोक राजपुरोहित
खरोकडा / मातृभाषा हमारी विरासत है, हमारी संस्कृति की स्मृति है |भाषा केवल संस्कृति और पहचान का अंग नहीं है बल्कि अपने आप में संस्कृति और पहचान है| मातृभाषा से कट जाने का अर्थ है समाज से कट जाना| बढ़ते शहरीकरण के प्रभाव के चलते वर्तमान पीढ़ी अपनी मातृभाषा से कहीं दूर चली गई है उसमें राजस्थानी भाषा के प्रभाव का कम होने का मुख्य कारण इसकी संवैधानिक मान्यता न होना है हालांकि इसी बीच राजस्थानी भाषा अकादमी की स्थापना की गयी जो राजस्थानी भाषा को व्यवस्थित रूप से पढ़ाने की पद्धति और पाठ्यक्रम बनाने की दिशा में एक प्रयास है| लेकिन कई लोगों का यह भी मानना है कि राजस्थानी एक स्वतंत्र भाषा नहीं है बल्कि हिन्दी की एक बोली है अब उन्हें कौन समझाए कि आठवीं शताब्दी में उद्योतन सूरी ने कुवलयमाला नामक पुस्तक में मरु भाषा का वर्णन किया है| वहीं सोलहवीं शताब्दी में अबुल- फजल ने आईने-ए-अकबरी में मारवाड़ी का उल्लेख करता है , भाषा विज्ञान के नियम और इतिहास को देखें तो राजस्थानी हिंदी की बोली नहीं ठहरती| वहीं ऐसे हिन्दी की कई भाषाएं जो आठवीं अनुसूची में शामिल है तो देखा जाये तो राजस्थानी भाषा का आठवीं अनुसूची में ना शामिल होने का कारण राजनेताओं का दोगलापन है| राजस्थान की बोलियों का संबंध राजस्थानी पहचान से सौ साल पहले ही समझा दिया गया था इसीलिए सभी बोलियो की बजाए एक राजस्थानी भाषा जो कि बोलियो की एक ही पहचान है इसकी संवैधानिक मंजूरी की संभावना बहुत अधिक है साहित्य के स्तर पर और बोलचाल के स्तर पर भी राजस्थानी में भाषाई एकता दिखाई देखी जा सकती है|
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