सायला/रेवतड़ा
सुहागिन महिलाओं और कन्याओं ने मनाई कजली तीज
रेवतड़ा एवं आस पास के क्षेत्रो में कजली तीज का पर्व सुहागिनों ने अपने सुहाग की रक्षा के लिऐ मनाया गया। हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी तीज मनाई जाती है। इस दिन महिलाएं अपने पति के दीर्घायु होने की कामना के साथ माता पार्वती की स्वरूप नीमड़ी माता की पूजा-अर्चना करती हैं। साथ ही अविवाहित लड़कियां अच्छा वर प्राप्त करने के लिए इस कजरी तीज का व्रत रखती हैं।
शास्त्री शेखरभाई श्रीमाली के अनुसार, कजरी तीज के दिन नीमड़ी माता का पूजन किया जाता है। इन्हें माता पार्वती का ही रूप माना जाता है। इस दिन महिलाएं सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर निर्जल व्रत का संकल्प लेती है। भोग लगाने के लिए सातू के लड्डू बनाती है। गोबर से छोटा तालाब बनाकर इसमें नीम की डाल पर चुनरी चढ़ाकर नीमड़ी माता की स्थापना करती है। सोलह श्रृगांर कर माता का पूजन करती है। नीमड़ी माता को हल्दी, मेहंदी, सिंदूर, चूड़िया, लाल चुनरी, सत्तू आदि चढ़ाकर, व्रत का पारण चंद्रमा को अर्घ्य देकर करती है।
कजरी तीज का महत्व
इस दिन महिलाएं पति की लंबी आयु की कामना के लिए व्रत रखती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, कुंवारी कन्याओं के लिए भी यह व्रत उत्तम माना जाता है। कहते हैं कि इस व्रत के प्रभाव से कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही भगवान शंकर की कृपा से वैवाहिक जीवन की समस्याएं दूर हो जाती हैं।
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