गंभीर सूखे की चपेट में कंवला सहित आस पास का सीमावर्ती क्षेत्र
किसानों के चेहरे पर दिख रहीं चिंता की लकीरें
आहोर उपखंड क्षेत्र सहित कंवला सहित आस पास का जिले का सीमावर्ती क्षेत्र इस साल भीषण सूखे की चपेट में है। बारिश न होने और खेतों में नमी न होने के कारण ज्यादातर खेतों में बुवाई के बाद फसलें चौपट हो रहीं है। बहुत से किसान ऐसे हैं जिन्होंने बारिश की उम्मीद से मूंग, तिल, उड़द, ग्वार, बाजरा आदि की फसल बो दी थी। लेकिन बारिश न होने के बाद 45-50 दिन होने के बाद बीज और फसलें सूख गई है और उन्हें लाखों रुपए का नुकसान हो गया है। उपखंड क्षेत्र में मानसून सामान्यत: 15 जुलाई तक पहुंच जाता था। लेकिन इस बार एक-डेढ़ महीने की देरी के बावजूद मानसून के बादल नहीं बरसे हैं। कंवला सरपंच शैलेन्द्र सिंह ने बताया कि कंवला सहित खेड़ा सूलियां, खेड़ा सांवरी, चवरड़ा और भूति भीषण सूखे की जद में है। उनका कहना है, "इस साल कोविड-19 के कारण किसानों की अधिकांश आय इलाज पर खर्च हो गई है। उन्हें मौजूदा फसल से बहुत उम्मीद थी लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है। 15 जुलाई तक इतनी कम बारिश सीमावर्ती क्षेत्र में नहीं देखी गई है।" वही उपसरपंच खीम सिंह सोलंकी ने मौजूदा वर्ष की तुलना पूर्व के वर्षों के सूखे से करते हुए बताते हैं कि पूर्व में 15 अगस्त तक राज्य में सूखे की घोषणा कर दी जाती थी। उनका कहना है कि अगर 15 अगस्त तक 50 प्रतिशत बारिश न हो तो नियमों के अनुसार, सूखे की घोषणा करनी पड़ती है। हालांकि इस साल ऐसी किसी घोषणा की सुगबुगाहट नहीं है। वह बताते हैं कि मौजूदा सीजन में नुकसान का असर अगले फसल चक्र पर भी पड़ेगा। वही वार्डपंच राम सिंह जोजावत ने बताया कि ब्रह्मालीन महातपस्वी संतोषपुरी जी महाराज के वरदान के मुताबिक कंवला में कभी पूर्ण सूखा नहीं रहा, लेकिन इस साल बेपानी भयंकर सूखा पड़ता नजर आ रहा है। इस वर्ष हालात बहुत खराब होने के आसार हैं। कंवला, खेड़ा सूलियां, खेड़ा सांवरी, चवरड़ा और भूति में वर्षा आंशिक भी नहीं हो रही है। पूरा आषाढ़, श्रावण बीत गया, अब भाद्रपद भी बीत रहा है। इस वर्ष जलसंकट से बद्दतर होने की स्थिति बन रही है। सीमावर्ती क्षेत्र भीषण सूखे की तरफ जा रहा है।"
सूख गई तिल, मूंग, ग्वार, बाजरे सहित खरीफ फसलें
जालौर जिले के कंवला गांव सहित आसपास के सीमावर्ती क्षेत्र के किसानों ने जून-जुलाई के मध्य में मूंग, तिल, ग्वार बोया था। लेकिन खेतों में बारिश की कमी के कारण खेतों को नमी नहीं मिल पाई और खरीफ की फसलें सूख गई। 60 साल के किसान मूल सिंह सिंधल बताते हैं कि उन्होंने 1988-89 में ऐसी परिस्थिति देखी थी। उस साल सीमावर्ती क्षेत्र में भीषण सूखा पड़ा था। यह सूखा क्षेत्र के सबसे खतरनाक सूखों में से एक था। तब से पहली बार मानसून की बारिश में इतनी देर हुई है। उन्होंने माना कि इस साल सूखे के पूरे आसार हैं। वहीं मालाराम के अनुसार, "अगर तीन-चार दिन में बारिश नहीं हुई तो किसानों के लिए पूरा सीजन बेकार चला जाएगा।" सीमावर्ती क्षेत्र की खेती सूखे से प्रभावित होने लगी है। किसान अब क्षेत्र के पटवारियों की गिरदारी रिपोर्ट एवं सरकारी सहायता की उम्मीद लगाए बैठे हैं। किसानों ने सरकार से पशुधन के लिए चारा-गृह एवं चारा-बॉक्स खोलने की अपील की। वहीं भूति निवासी रमेश कुमार हिरागर बताते हैं कि इस साल मानसून से पहले वाली बारिश भी नहीं हुई। इस बारिश से खेतों में थोड़ी बहुत नमी आ जाती थी और किसान बुवाई कर देते थे। क्षेत्र के उनके करीब 25 बीघा खेत हैं। उन्होंने तिल, ग्वार और मूंग की फसल की तैयारी की थी। वह बताते हैं कि अगर इस साल अच्छी खेती नहीं हुई तो उनकी माली हालत बहुत खराब हो जाएगी। क्योंकि इस साल खेती से उम्मीद न के बराबर है।" इस बार इतनी देर हो चुकी है कि किसानों को हुए नुकसान की भरपाई संभव नहीं है। वही भूति सरपंच प्रतिनिधि लाखाराम देवासी बताते हैं कि सीमावर्ती क्षेत्र में जून के दूसरे सप्ताह ठीक ठाक बारिश हुई थी, लेकिन उसके बाद से बारिश नसीब नहीं हुई है। उनका कहना है कि जून में हुई बारिश वनों और पशु पक्षियों के लिए तो उपयोगी साबित हुई लेकिन उससे किसानों को विशेष फायदा नहीं मिला। अब जब बारिश की सख्त जरूरत है तो बादल नहीं बरस रहे हैं। उनका कहना है कि पूरा सीमावर्ती क्षेत्र ही नहीं बल्कि जालोर जिला करीब 80-90 प्रतिशत गंभीर सूखे की ओर बढ़ रहा हैं।
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