कोरोना महामारी के बीच सादगी से मनाया गया बकरा ईद का पर्व


एक दुसरे के गले मिलकर मनाया ईद-उल-अजहा त्यौहार 

संवाददाता कैलाश सिंह राजपुरोहित

कोरोना महामारी के बीच सादगी से मनाया गया बकरीद का पर्व 



सिवाना  :- ईद-उल-अजहा यानी बकरीद का त्योहार शनिवार को सादगी और उत्साह के साथ मनाया गया । कोरोना वायरस के कारण मुस्लिम समुदाय के लोगों ने नियमों का पालन करते हुए मस्जिदों के साथ-साथ घरों में भी नमाज अदा की। वहीं मुस्लिम समुदाय के द्वारा खुदा की बारगाह मे कोरोना जैसी महामारी से बचाने की दुआ मांगी गई। ईद की नमाज के बाद लोगों एक-दूसरे को मुबारकबाद देने का सिलसिला शुरू किया ।बकरीद की नमाज शनिवार को घरों में ही अदा की गई। लोगों ने नमाज के बाद एक-दूसरे को ईद उल अजहा की बधाई दी। वहीं मस्जिदों समेत ईदगाह पर थाना अधिकारी दाऊद के नेतृत्व मे पुलिसकर्मीयों तैनात रहे। वही मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भी समझदारी का परिचय देते हुए मस्जिदों का कम ही रुख किया नमाज पढ़कर ईदगाह व मस्जिद में से निकले लोगों ने एक दूसरे के गले मिलकर त्योहारहार की मुबारकबाद देने के पश्चात खुदा की राह में बकरों की कुर्बानी दी। नमाज के बाद बाहर निकले लोगों ने मिलकर एक दुसरे बधाईयों दी ! वहीं दंताला वली के परिसर के इमाम ने बताया इस्लाम ने बताया कि मीठी ईद के करीब 2 महीने बाद बकरीद का पर्व मनाया जाता है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। बकरीद को ईद-उल-अज़हा भी कहा जाता है। इस्लाम धर्म में इस त्यौहार को कुर्बानी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। रमजान महीना खत्म होने के करीब 70 दिन बाद बकरीद आती है। इस्लाम में इस दिन अल्लाह के नाम पर कुर्बानी देने की परंपरा रही है। मुसलमान इस दिन नामज पढऩे के बाद खुदा की इबादत में बकरे की कुर्बानी देते हैं और उनके गोश्त को तीन भाग में बांटकर इसे जरूरतमंदों और गरीबों को देते हैं। बकरीद के बारे में कहा जाता है कि पैगंबर इब्राहिम से कुर्बानी देने की यह परंपरा शुरू हुई। हजरत इब्राहिम अलैय सलाम को कोई संतान नहीं थी। अल्लाह से औलाद की काफी मिन्नतों के बाद इन्हें एक बेटा पैदा हुआ जिसका नाम स्माइल रखा गया। इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे। कहते हैं कि एक रात अल्लाह ने इब्राहिम के सपनें में आकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी। अल्लाह के आदेश को मानते हुए उन्होंने अपने ऊंट की कुर्बानी दे दी। लेकिन उन्हें फिर से यह सपना आया जिसमें सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने की बात कही गयी। इस पर इब्राहिम ने अपने सभी जानवर कुर्बान कर दिए। लेकिन उन्हें सपनें आना बंद नहीं हुआ और एक बार फिर से उन्हें उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने का आदेश मिला। अब इब्राहिम समझ चुके थे कि अल्लाह उनके बेटे की कुर्बानी मांग रहे थे क्योंकि उनको अपना बेटा बहुत ही प्यारा था। ऐसे में वह अल्लाह पर भरोसे के साथ अपने बेटे की कुर्बानी के लिए तैयार हो गए। बेटे की कुर्बानी देते वक्त उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। कुर्बानी देने के बाद जब उन्होंने अपनी आंखे खोली तो अपने बेटे को उन्होंने जीवित और खेलता हुआ पाया। अल्लाह ने इब्राहिम की निष्ठा को देख बेटे की कुर्बानी को बकरे की कुर्बानी में बदल दिया। इब्राहिम के विश्वास और कुर्बानी से खुश होकर अल्लाह ने उन्हें पैगंबर भी बना दिया। कहा जाता है कि इसी दिन से कुर्बानी देने की परंपरा चली आ रही है।


 
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