रूपावास राजपुरोहितान : जहां पांच ढ़ोलों से होता है बारात का सामेळा **

एक आईना भारत
सोजत कुलदीप सिंह रुपावास

** रूपावास राजपुरोहितान : जहां पांच ढ़ोलों से होता है बारात का  सामेळा **

कवि दलपत सिंह रुपावास 


* रूपावास राज पुरोहितान गांव में यह परम्परा साढ़े पांच सौ सालो से चली आ रही है । इस गांव में पांच भाईयो का परिवार है । पांचो भाईयो के वंशज पांच मोहल्लो में रहते है । तथा दो भाईयो के वंशज मोहराई में रहते है । रूपावास में बिहारीसाल , हेमराज सिंह, सांवलसिंह  , उदयसिंह  व जयसिंह  के वंशज रहते है । आज की तारीख में इन पांचो भाईयो के वंशजो के करीब चार सौ घर है । दो भाई अचलसिंह  व ठाकुरसिंह  के वंशज मोहराई में रहते है । पांचवा गांव में भी हमारे भाई रहते है ।  सभी राजसिंह  के वंशज है इसलिये राजावत कहलाते है ।
 गांव में जब भी हमारी बेटियो की शादी होती है तो रूपावास में रहने वाले पांचो भाईयो के वंशज अपना अपना ढ़ोल , थाली व चिराग लेकर बारातियों के स्वागत में आते है । अर्थात अतिथियो के स्वागत में पूरा गांव पलक पावंडे बिछा देता है । गांव के फळै से लेकर चारभुजानाथ भगवान के मंदिर तक पूरा गांव स्वागत में खड़ा रहता है । उसके बाद जिस घर में शादी होती है दुल्हे को वहां ले जाया जाता है । बाराती चारभुजानाथ के मंदिर के चौक से बारात के डेरे में जाते है । 
एक ही सावा में भले ही कितनी ही बाराते आये तो भी सांमेला सभी का एक साथ ही होता है । कहने का मतलब यह है कि सामेला का कार्यक्रम पूरे गांव का होता है । सदियो से यह परम्परा चली आ रही है और आगे भी चलती रहेगी ।

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