*उटांबर में शिवरात्रि महोत्सव का आयोजन
बालेसर
उटाम्बर गांव के संस्थापक मरूधरा के महान त्यागी तपस्वी बाबा श्री कानङ भारती महाराज चैतन्य समाधि स्थल जोगमाया मठ उटाम्बर के परम आज्ञाकारी शिष्य श्री दुर्गाभारती महाराज जिन्होने अपनी गुरू भक्ति के तपोबल व माता महालक्ष्मी के आशीर्वाद से सत्रहवी शताब्दि के उतरार्ध मे हरिद्वार महाकुंभ पर्व पर सम्पूर्ण महाकुंभ के सन्त महात्माओ व तिर्थ यात्रियो को उटाम्बर जोगमाया मठ की तरफ से महाप्रसादी भंडारा व दक्षिणा देकर सन्तो महन्तो मे अग्रिम स्थान प्राप्त किया था।
इस भंडारे मे प्रसादि बनाने हेतू घीरत व खांड की अति आवश्यकता पङने पर बाबाजी ने पतित पावनी मां गंगा से सामग्री उधार देने की विनती की जिसके फल स्वरूप मां भागीरथी का पावन गंगाजल भंडार के पात्र मे लेते ही घीरत बना एवम गंगा मईया के पवित्र किनारो से रेणूका माटी से खांड बनी थी जिसका महाप्रसाद बनाकर सम्पूर्ण महाकुंभ को प्रसाद करवाया गया।
महाराज जी कुंभ यात्रा से वापिस ऊटाम्बर आकर गंगा मईया से उधार ली हुई सम्पूर्ण सामग्री को ऊंटों पर लाद कर मां गंगा को वापस भेजा।
आपके इस महान कार्य के लिये अखाङो मे एक लोकोक्ति कहावत बनी
'सईयो किजो मंगल आरती,
दमङा देसी दुर्गाभारती,
सहाय करसी कानङभारती,
उपरोक्त कहावत आज भी भक्त लोग गर्व से गाते है
जोगमाया मठ मे रहते हुए आपने मरूधरा के महान सन्तो की प्रेरणा से मठ के पास शिवालय देवळ का निर्माण करवाया जिसमे भगवान आशुतोष शूलपाणि भोलेनाथ श्री नर्मदेश्वर महादेव को नन्दी सहित प्रतिष्ठित किया जहा पर प्रति वर्ष महाशिवरात्रि का महापर्व सभी ग्रामीण हर्षोल्लास के साथ मनाते। इस महाशिवरात्रि को पंडित श्री नृसिहराम कठास्तला के आचार्यत्व मे ग्रामीण भक्तो ने महाशिवरात्रि के चारों प्रहर मे विधि पूर्वक षोडषोपचार पंचोपचार पूजन सहित रूद्राभिषेक कर रात्रि के चारो प्रहर की आरति व श्रृंगार से आराधना कर सर्व मंगल की कामना की गई।
इस आयोजन मे कानदास संत, जगदीश भट्टङ, रावलसिह पंवार, गोपीकिशनवसोनी, दिनेश कैला, सरपंच दिपारामडूडी, देवेन्द्रसिह चौहान, जेठुसिह, गौविन्द सैन, राधेश्यामभट्टङ, जितेन्द्रसोनी,भियाराम,खीवराजराठी, सहित अनेक शिवभक्तो ने शिव आराधना का लाभ लिया।
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