दहेज प्रथा को खत्म करना चाहिए -विक्रमसिह बालोत
एक आईना।भारत
वर्तमान समय में दहेज व्यवस्था एक ऐसी प्रथा का रूप ग्रहण कर चुकी है जिसके अंतर्गत लड़की के माता-पिता और परिवार वालों का सम्मान दहेज में दिए गए धन-दौलत पर ही निर्भर करता है. वर-पक्ष भी सरेआम अपने बेटे का सौदा करता है. प्राचीन परंपराओं के नाम पर लड़की के परिवार वालों पर दबाव डाल उन्हें प्रताड़ित किया जाता है, संपन्न परिवारों को शायद दहेज देने या लेने में कोई बुराई नजर नहीं आती, क्योंकि उन्हें यह मात्र एक निवेश लगता है, उनका मानना है कि धन और उपहारों के साथ बेटी को विदा करेंगे तो यह उनके मान-सम्मान को बढ़ाने के साथ-साथ बेटी को भी खुशहाल जीवन देगा लेकिन निर्धन अभिभावकों के लिए बेटी का विवाह करना बहुत भारी पड़ जाता है, वह जानते हैं कि अगर दहेज का प्रबंध नहीं किया गया तो विवाह के पश्चात बेटी का ससुराल में जीना तक दूभर बन जाएगा।दहेज एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसका परित्याग करना बेहद जरूरी है, शिक्षित और संपन्न परिवार भी दहेज लेना अपनी परंपरा का एक हिस्सा मानते हैं तो ऐसे में अल्पशिक्षित या अशिक्षित लोगों की बात करना बेमानी है, युवा पीढ़ी जिसे समाज का भविष्य समझा जाता है, उन्हें इस प्रथा को समाप्त करने के लिए समाज को आगे आना होगा ताकि भविष्य में प्रत्येक बेटी को सम्मान के साथ जीने का अवसर मिले।
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