खरबूजे-तरबूजे की पैदावार खूब, पर खरीदार नहीं
एक आईना भारत /
अगवरी यूं तो कोरोना के संकट से सभी प्रभावित है, पर बाकली एवं इससे सटे गुजरात के धानेरा व डीसा तालुका में हजारों बीघा भूमि में मौसमी फल खरबूजे व तरबूजे की खेती करने वाले काश्तकारों पर तो मानों गाज ही गिर गई है। जब फरवरी-मार्च में फसल लगाई तब अच्छी-खासी कमाई के सतरंगी सपने देखे थे, पर अप्रेल-मई में जैसे ही खरबूजे व तरबूजे की बम्पर पैदावार आनी शुरू हुई, कभी वीकेंड कफ्र्यू तो कभी महामारी रेड अलर्ट कफ्र्यू व लॉकडाउन की पाबंदियां लगने से यह मौसमी फल खेत से ज्यादा दूरी का सफर ही नहीं कर सका। गुजरात की डीसा, पाटण, पालनपुर, मेहसाना व अहमदाबाद तथा प्रदेश की जालोर,आबूरोड, पाली, जोधपुर, उदयपुर व जयपुर की मंडियों तक ये फल पहुंच ही नहीं पाए। इक्का-दुक्का काश्तकारों ने इन मंडियों तक पहुंचाने की हिम्मत भी को तो वहां दाम नहीं मिलने से घाटे का ही सौदा रहा।खेतों में पड़े सड़ रहे या पशुओं को खिला रहे
लोकल बाजार में न मांग बढ़ी और ना ही खपत। जाहिर है, मांग ज्यादा नहीं होने पर खरबूजे व तरबूजे सस्ते में बेचने को काश्तकार मजबूर हो गए। पांच से छह रुपए किलो की दर पर बेचने के बावजूद रफ्ता-रफ्ता मांग ही कम हो गई। फिलहाल स्थिति यह है कि डीजल महंगा होने व मांग में भारी गिरावट के चलते खरबूजे व तरबूजे को काश्तकारों ने खेत से बाहर ले जाना ही बंद कर दिया। अब ये मौसमी फल खेतों पर ही पड़े-पड़े सड़ रहे हैं। कई पशुपालक इन्हें मुफ्त में या मुफ्त के भाव लेकर पशुओं को खिला रहे हैं। काश्तकार खासे दुखी है, पर वे अपनी व्यथा आखिरकार सुनाए तो सुनाए किसे। यही उनकी विडम्बना है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक इस बार इस फसल से प्रत्येक काश्तकार को तीन से चार लाख रुपए का नुकसान होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
लगातार दूसरे साल किसानों को दिया जोर का झटका
क्षेत्र में जल स्तर ऊंचा होने से पावटा व आसपास के अधिकतर काश्तकार गर्मियों में खरबूजे व तरबूजे की खेती करते हैं। हर साल अच्छी-खासी कमाई करते हैं, पर पिछले साल जब से कोरोना ने दस्तक दी, तबसे उनकी कमाई पर ग्रहण लग गया। लगातार दो साल से इसकी खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। किसानों ने बताया कि पिछले साल भी लॉकडाउन लगने से सारा माल खराब हो गया था और इस बार भी खरीदार नहीं मिलने से माल खराब हो रहा है। यह किसानों के लिए बड़ा झटका है
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