हिंदू युवा संगठन कार्यकर्ताओं ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि पर किए पुष्प अर्पित




हिंदू युवा संगठन कार्यकर्ताओं ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि पर किए पुष्प अर्पित 

 जालौर शहर स्थित झांसी की रानी उद्यान तिलक द्वार के बाहर में लक्ष्मी बाई की प्रतिमा पर पुष्पांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया।  संस्था नगर अध्यक्ष मयंक देवड़ा ने बताया कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि बलिदान दिवस के रूप में उद्यान में मनाई गई। पुष्पांजलि कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा पुष्प हार चढ़ाकर पुष्पांजलि अर्पित की गई।कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के नाथे पार्षद दिनेश महावर उपस्थित थे। वही अध्यक्षता संस्था अध्यक्ष अधिवक्ता सुरेश सोलंकी ने की।विशिष्ठ अतिथि के नाते जिलाकुस्ती संघ जिलाध्यक्ष महेंद्र मुणोत संस्था जिलामहामंत्री अर्जुनसिंह पंवार पार्षद दिनेश बारोट प्रकाश आचार्य रतन सुथार महेंद्र राठौड़ चतराराम गहलोत उपस्थित थे। कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं द्वारा झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अमर रहे अमर रहे भारत माता की जय आदि जयकारे लगाए।दिनेश महावर ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। क्योंकि घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे। जहाँ चंचल और सुन्दर मनु को सब लोग उसे प्यार से "छबीली" कहकर बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्र की शिक्षा भी ली ।अधिवक्ता सुरेश सोलंकी ने कहा कि सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया।सितंबर 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु चार महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 की राज्यक्रान्ति की द्वितीय शहीद वीरांगना थीं। उन्होंने सिर्फ 29 वर्ष की उम्र में 18 जून 1858 को अंग्रेज साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुई।
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