गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा : त्रिदिवसीय यज्ञोपवित संस्कार कार्यक्रम का हुआ अद्वितीय आयोजन*
एक आईना भारत /
जालौर पथमेड़ा-आनन्दवन परिसर में अनेकों बालकों-सज्जनों का त्रिदिवसीय यज्ञोपवित संस्कार कार्यक्रम सम्पूर्ण वैदिक विधान से परम पूज्य गोऋषि स्वामी दत्तशरणानंद महाराज के पावन सान्निध्य-सहस्रों गोमाताओं की सन्निधि में पंडित ललित द्विवेदी के आचार्यत्व व पूज्य संतों-महंत रविन्द्रानन्द सरस्वती नर्मदेश्वर घाट सीलू,गोसंत नन्दरामदास महाराज, दीनदयाल महाराज बिजरोल खेडा, ऋषि चैतन्य महाराज कामधेनु शक्तिपीठ , विप्रों-अभिभावकों -गोभक्तों गोवत्स विट्ठल कृष्णजी, राकेश जी बी.डी. ओ.,धर्मशरण जी,होथी जी,भगाजी की उपस्थिति में संपन्न हुआ।
प्रथमदिवस 18 जून को मुंडन संस्कार हुआ। द्वितीय दिवस 19 जून को दश विधि स्नान श्री दत्तत्रिवेणी तीर्थ में पंचगव्य व विभिन्न दिव्य औषधियों द्वारा श्रीकामधेनु कोटितीर्थ के दिव्य जल से विधिवत संपन्न हुआ।
तृतीय दिवस 20 जून गंगा दशहरा के पुण्य अवसर पर वेदलक्ष्णा गोमाता से प्राप्त पंचगव्य पान के साथ उपनयन संस्कार कार्यक्रम की शुरुआत हुई। वैदिक मंत्रों के साथ सम्पूर्ण वैदिक विधि विधान से अभिजीत मुहूर्त में यग्योपवीत संस्कार संपन्न हुआ।पंडित ललित द्विवेदी ने यज्ञोपवीत के महत्व को समझाया एवं इससे सम्बंधित नियमों की व्याख्या की।
परम पूज्य गोऋषि स्वामी दत्तशरणानंद जी महाराज ने भगवन्नाम संकीर्तन व विश्व कल्याण की प्रार्थना के साथ यज्ञोपवीत संस्कार व गायत्री उपासना के महत्व को समझाते हुए कहा कि यज्ञोपवीत संस्कार सनातन धर्म के 16 संस्कारों में सर्वश्रेष्ठ व अनिवार्य संस्कार है। साथ ही इस संस्कार से व्यक्ति का दूसरा जन्म होता हैं। इसी से व्यक्ति द्विज बनता है। मनुष्य में दिव्यता का अवतरण इसी संस्कार से होता है। बिन्दज जन्म के बाद यह दूसरा जन्म आचार्यों की सन्निधि में नाना प्रकार की शास्त्रीय विधियों से होता है जिसे नादज सृष्टि कहते है । यह जन्म शब्द से होता है। उन्होंने ब्रह्मचर्य आश्रम -गुरुकुल व्यवस्था के महत्व पर भी प्रकाश डाला। महाराज ने कहा कि प्राचीन गुरुकुल व्यवस्था लुप्त होने के कारण वर्तमान में प्रतीकात्मक रूप में यज्ञोपवीत संस्कार कार्यक्रम हो रहे है। यज्ञोपवीत हमारी आत्मा चेतना का सुरक्षा कवच है। उन्होंने शिखा धारण ,यज्ञोपवीत, गोसेवा महाव्रत को धारण करना,सम्पूर्ण परिवार सहित गोव्रती बनना,गोशालाओं व गोचर भूमि में वृक्ष लागाना आदि पवित्र कर्मों को करने की पावन प्रेरणा दी।
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