राष्ट्रिय महामंत्री ने किया इतिहासकार नाहर की शोध पुस्तक "युगपुरुष बप्पारावल" का विमोचन


पाली सिटी,

मरुधर आईना 


राष्ट्रिय महामंत्री ने किया इतिहासकार नाहर की शोध पुस्तक "युगपुरुष बप्पारावल" का विमोचन

अक्टूबर पाली सिटी,अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना द्वारा आयोजित "राष्ट्रिय सेमिनार -आज़ादी का पचत्तर्वे अमृत महोत्सव " में वरिष्ठ इतिहासकार व लेखक विजय नाहर की नयी शोध पुस्तक "युगपुरुष बप्पारावल" का विमोचन  इतिहास संकलन योजना  के  राष्ट्रिय महामंत्री  बालमुकुंद पांडेय, राष्ट्रिय उपाध्यक्ष  प्रो. के एस गुप्त व पद्मश्री अर्जुनसिंह शेखावत ने किया।  नाहर मेवाड़ में राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक के नाते मेवाड़ में 10 वर्ष रहे है । उनके अनुसार मेवाड़ की धरती का कण कण जिस इतिहास को गा रहा है वह हमारे समक्ष आज नही है। इतिहास की पुस्तकों व पाठ्यक्रमों में बप्पा रावल के विषय मे एक लाइन भी नही है। भारत के गौरवमयी इतिहास को मुस्लिम व विदेशी इतिहासकारो ने इस तरह लिखा कि भारतीय अपने पूर्वजों पर गर्व ना कर सके। नाहर ने 300 पृष्ठों की पुस्तक में बप्पारावल के इतिहास को संदर्भ सहित लिखा है और इतिहास की विकृतियों को दूर करने का प्रयास किया है। पुस्तक की भूमिका राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के एस गुप्त ने लिखी है व प्रकाशन पिंकसिटी पब्लिशर्स जयपुर ने किया है।
पुस्तक के अनुसार बप्पा रावल के नेतृत्व में पश्चिमी भारत के राजाओं की संगठित शक्ति ने मुस्लिम व अरब आक्रमणकारियों को भारतीय सीमाओं से बाहर खदेड़ दिया। जो जो राजा बप्पा रावल के सैनिक संगठन में थे वह सभी महर्षि हारीत के शिष्य थे जिन्हें पूर्व में ही हारित ने बप्पा रावल के नेतृत्व के लिए तैयार कर लिया था। बप्पा रावल ने गजनी खुराशान आधी विदेशी धरती पर जाकर हिंदू राज्य स्थापित किया। इतना ही नहीं उन राजाओं की कन्याओं से विवाह कर भारतीय सीमाओं की स्थाई सुरक्षा हेतु एक शक्तिशाली दीवार खड़ी की, अरबों की शक्ति को कुचला । आगे 300 वर्षों तक भारत पर विदेशी आक्रमण नहीं हो सके। बप्पा रावल ने चित्तौड़ आकर राजसूय यज्ञ कर उत्तर भारत की संगठित शक्ति का उद्घोष किया . बप्पा रावल जीवन में एक भी युद्ध में पराजित नहीं हुए । वह निरंकुश शासक नहीं थे चक्रवर्ती सम्राट थे। 58 वर्ष की उम्र में अपना शासन अपने पुत्र को देकर स्वयं ने एकलिंग नाथ में महर्षि हारीत परंपरा से वानप्रस्थी बन गए । यथा समय सन्यास लेकर शतायु पूर्ण कर जीवित समाधि ले ली । वह स्थान आज भी मेवाड़ में बप्पा रावल से जाना जाता है ।
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