रविवार को मनायेगी हिंदु महिलाएं करवा चौथ : शास्त्री



रविवार को मनायेगी हिंदु महिलाएं करवा चौथ : शास्त्री 



भीनमाल  ।

 सौभाग्य का यह व्रत सूर्योदय होने से पहले आरंभ किया जाता है और सूर्यास्त के बाद चंद्रमा निकलने तक रखा जाता है।  शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी ने बताया कि करवा चौथ कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह व्रत 24 अक्टूम्बर रविवार को है। इस व्रत में महिलाएं बिना जल ग्रहण किए व्रत रखतीं हैं और रात के वक्त चांद निकलने के बाद व्रत का पारणा करती हैं। सामाजिक मान्यता है कि सुहागिन महिलाएं यदि करवा चौथ व्रत का विधिवत पालन करें तो उनके पति की आयु लंबी होती है। साथ ही वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है। यह व्रत सूर्योदय होने से पहले आरंभ किया जाता है और सूर्यास्त के बाद चंद्रमा निकलने तक रखा जाता है।   करवा चौथ और संकष्टी चतुर्थी एक दिन हैं। संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा की जाती है। वहीं करवा चौथ के दिन विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु की कामना के लिए निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव, पार्वती और कार्तिकेय की पूजा करतीं हैं। संध्या काल में चंद्र देखने के बाद अर्घ्य देकर व्रती अपना व्रत तोड़ती हैं।  त्रिवेदी ने बताया कि करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से चंद्रोदय तक रखा जाता है। ये व्रत निर्जल या केवल जल ग्रहण करके ही रखना चाहिए। व्रत रखने वाली स्त्री को काले और सफेद कपड़े नहीं पहनने चाहिए। लाल और पीले रंग के कपड़े पहनना इस दिन शुभ माना गया है। इस व्रत को सुहागिन औरतों के अलावा वो लड़कियां भी रख सकती हैं, जिनका रिश्ता तय हो गया हो या शादी की उम्र हो गई हो । इस दिन व्रत रखने वाली महिला को पूर्ण श्रृंगार करना चाहिए। इस व्रत में सरगी जरूरी है। सुबह सूरज उगने से पहले सास अपनी बहू को सरगी देती है, जिसमें बहू के लिए कपड़े, सुहाग की चीजें, साथ ही फेनिया, फल, ड्राईफ्रूट, नारियल आदि रखा जाता है। पति की दीर्घायु और मंगल-कामना हेतु सुहागिन नारियों का यह महान पर्व है। करवा (जल पात्र) द्वारा कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को चन्द्रमा को अर्घ्य देकर पारणा (उपवास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को चन्द्रमा को अर्घ्य देकर पारणा उपवास के बाद का पहला भोजन) करने का विधान होने से इसका नाम करवा चौथ है। करवा चौथ और करक चतुर्थी पर्याय है। चन्द्रोदय तक निर्जल उपवास रखकर पुण्य संचय करना इस पर्व की विधि है। चन्द्र दर्शनोपरांत सास या परिवार में ज्येष्ठ श्रद्धेय नारी को बायना देकर सदा सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद लेना व्रत साफल्य की पहचान है।  करवा चौथ व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है । सुबह सूर्योदय से पहले उठ जाएं । सरगी (दांतन मीड़ा) के रूप में मिला हुआ भोजन करें । पानी पीएं और भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें । करवा चौथ में महिलाएं पूरे दिन कुछ भी भोजन साम्रगी ग्रहण नहीं करतीं फिर शाम के समय चांद को देखने के बाद दर्शन कर व्रत खोलती हैं ।    इस संबंध में कुछ पौराणिक बातें है । मान्यता के अनुसार कुछ जगहों पर कुंआरी लड़कियां भी मनोवांछित पति की प्राप्ति के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं। करवा चौथ विशेष तौर पर नारियों का त्योहार है। पौराणिक कथाओं में माता पार्वती अपने पति शिवजी को पाने के लिए तप और व्रत करती है । उसमें सफल हो जाती है तो दूसरी ओर सावित्री अपने मृत पति को अपने तप के बल पर यमराज से भी छुड़ाकर ले आती है। यानी स्त्री में इतनी शक्ति होती है कि वो यदि चाहे, तो कुछ भी हासिल कर सकती है। इसीलिए महिलाएं करवा चौथ के व्रत के रूप में अपने पति की लंबी उम्र के लिए एक तरह से तप करती हैं। करवा मिट्टी का एक बर्तन होता है। काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी की वस्तु को करवा कहते हैं। कुछ लोग तांबे के बने करवे लाते हैं। इस तरह दो करवे बनाए जाते हैं। करवा में रक्षा सूत्र बांधकर, हल्दी और आटे के सम्मिश्रण से एक स्वस्तिक बनाते हैं। एक करवे में जल तथा दूसरे करवे में दूध भरते हैं और इसमें ताम्बे या चांदी का सिक्का डालते हैं। जब बहु व्रत शुरू करती है, तो सास उसे करवा देती है । उसी तरह बहु भी सास को करवा देती है। पूजा करते समय और कथा सुनते समय दो करवे रखने होते हैं । एक वो जिससे महिलाएं अर्घ्य देती हैं, यानी जिसे उनकी सास ने दिया होता है ।  दूसरा वो जिसमें पानी भरकर बायना देते समय उनकी सास को देती हैं। सास उस पानी को किसी पौधे में डाल देती हैं और अपने पानी वाले लोटे से चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं। मिट्टी का करवा महिलाएं इसलिए लेती हैं, क्योंकि उसे डिस्पोज किया जा सकता है। मिट्टी का करवा न हो तो कुछ महिलाएं स्टील के लोटे का प्रयोग भी कर लेती हैं। करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री के नाम पर ही करवा चौथ का नाम करवा चौथ पड़ा है। 
सरगी यह रस्म अक्सर पंजाब प्रांत में मनाई जाती है। कोई भी महिला जब करवा चौथ का व्रत रखती है तो उसकी सास उसे सरगी बनाकर देती है। सरगी एक भोजन की थाली है, जिसमें खाने की कुछ चीजें होती हैं। जिसको खाने के बाद दिन भर निर्जला उपवास रखा जाता है और फिर रात में चन्द्रमा की पूजा करने के बाद ही खाया जाता है। चूंकि सरगी को खाकर व्रत की शुरुआत की जाती है, इसलिए सरगी की थाली में ऐसी चीजें होती है, जिसे खाने से भूख और प्यास कम लगती है और दिन भर एनर्जी बनी रहती। इसमें अक्सर सूखे मेवे और फल होते हैं। सास द्वारा दी हुई सरगी से बहू अपने व्रत की शुरुआत करती है। करवा चौथ का व्रत चतुर्थी के चांद को देखकर ही खोला जाता है। चंद्रमा का उदय होने के बाद सबसे पहले महिलाएं छलनी में से चंद्रमा को देखती हैं फिर अपने पति को, इसके बाद पति अपनी पत्नियों को लोटे में से जल पिलाकर उनका व्रत पूरा करवाते हैं। चांद देखे बिना यह व्रत अधूरा रहता है।
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