जब प्राण तन से निकले विषय पर सारगर्भित प्रवचन हुआ



जब प्राण तन से निकले विषय पर सारगर्भित प्रवचन हुआ 



भीनमाल  / झाबुआ ।

ऋषभदेव बावन जिनालय झाबुआ में श्रीमती मनोरमाबेन कोठारी की स्मृति मे तीन दिवसीय जिनेन्द्र भक्ति के लाभार्थी सोहनलाल कोठारी परिवार थे ।  शुक्रवार को समारोह के अंतिम दिवस मुनिराज रजतचंद्र विजय म सा ने "जब प्राण तन से निकले " विषय पर सारगर्भित प्रवचन दिया ।  इस स्पेशल आयोजन में गुरू वन्दना संजय मेहता ने एवं ऋषभचन्द्र सूरि की तस्वीर समक्ष दीप प्रज्जवलित लाभार्थी सोहनलाल कोठारी परिवार ने किया ।
मुनि ने मुख्य विषय पर कहा कि मृत्यु तीन प्रकार से होती है । जो जीवन में कुछ भी धर्म नहीं करते हैं, उनका बाल मरण होता है। थोड़े बहुत नियम करके मृत्यु को प्राप्त होते हैं वह बाल पंडित मृत्यु वाले कहलाते हैं । जो जीवन में बहुत सारे व्रत लेते हैं या सर्व विरती ग्रहण करते हैं, उनका पंडित मरण होता है। हमे भी अंतिम समय में ऐसी भावना रखनी चाहिए की हमारा भी पंडित मरण होना चाहिेए। उस समय वितराग प्रभु और गिरिराज प्रभु की छाया प्राप्त हो । साथ ही उस समय मन में किसी प्रकार की मोह माया न हो । हमे यह सभी जीवन मे व्रत धारण करने से ही प्राप्त हो सकता है ।  उन्होंने कहा कि धन के बजाय धर्म में ज्यादा समय लगाये, क्योंकि बड़े बड़े चक्रवर्ती भी धन को साथ में नही ले जा पाये है । 
                मुनि ने कहा कि कब आत्मा देह छोड़ दे, पता नही लगेगा। इसलिये जो भी मिला है, वह प्रभु कृपा से मिला है । यह सोच कर अहंकार न करे । एक बार शरीर से आत्मा निकली फ़िर कुछ भी नही हो सकता है । बिना करुणा,  दया के तीर्थंकर नही बन सकते है । आपने उपस्थित धर्मालुओ से कहा कि जीवन मे ज्यादा से ज्यादा सामायिक और स्वाध्याय करना चाहिए । व्यक्ति धर्म कार्य करने हेतु समय का इन्तज़ार न करे, पाप कार्य करने के लिये इन्तज़ार करे और सोचे । हम सभी का जन्म रोते रोते हुआ है । कोशिश करे मरण के समय रोना न पड़े । यह भावना हमेशा रखे की अंत समय आये तब प्रभु और गुरु का दरबार सामने हो । मानव जीवन पुण्य से मिला है, तो पुण्य कार्य के लिये अर्पण करे ।
                   मीडिया प्रभारी माणकमल भंडारी ने बताया कि  27 ऑक्टोबर को माँ सरस्वती पूजन की पत्रिका के मूहर्त पर
भी मुनि ने वासक्षेप किया । साथ ही चाँदी से निर्मित नवकार महामंत्र की तस्वीर झाबुआ जैन संघ को चातुर्मास समिति ने भेट की । अंत में नवकार मंत्र, प्रभु गौतम स्वामी, गुरुदेव राजेन्द्रसूरीश्वर, और आचार्य ऋषभचन्द्र सूरि की आरती भी की गई । संचालन संजय काठी ने किया ।
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