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सार्वजनिक शिक्षा को ख़त्म करने की योजनाबद्ध साज़िश से शिक्षकों में रोष




सार्वजनिक शिक्षा को ख़त्म करने की योजनाबद्ध साज़िश से शिक्षकों में रोष



 सिरोही - सरकारी विद्यालयों तथा सार्वजनिक शिक्षा को खत्म करने का षड्यंत्र जोरों पर है। सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों, वरिष्ठ अध्यापकों, व्याख्याताओं व प्रधानाचार्यो को जुलाई माह में ही गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाकर सरकारी स्कूलों को उजाड़ने की साज़िश हो रही है। वरिष्ठ शिक्षक नेता तथा भारतीय मजदूर संघ के मीडिया प्रभारी गोपालसिंह राव ने बताया कि देश की आज़ादी के बाद पब्लिक सैक्टर के ज़रिए इस देश के विकास के पहिए को आगे बढ़ाने की योजना सरकार ने तैयार की । तथा इस दिशा में अनवरत आगे बढ़े। शिक्षा को भी सार्वजनिक क्षेत्र में लोक कल्याण के महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में स्थापित किया गया।लेकिन अब उसके विपरीत राजस्थान सरकार ने ये तय कर लिया है कि अब ये क्षेत्र लोक कल्याण के रूप में सार्वजनिक क्षेत्र का हिस्सा नहीं , वरन इसे बाज़ार के हवाले कर बड़े निजी मुनाफ़े का सैक्टर बनाया जावे। राजस्थान सरकार ने चालाकी से ये तय कर लिया है और प्रशासनिक अधिकारियों ने इस सिस्टम में शिक्षक को कक्षा कक्ष से दूर कर नामांकन और गुणवत्ता को प्रभावित करने की नीति तैयार कर ली है। पिछले वर्ष में डेढ़ लाख शिक्षकों को प्रशिक्षण के नाम पर जुलाई माह में स्कूलों से बाहर कर दिया। इस बार जुलाई के पहले सप्ताह में , जहां हमारी फसल को बोने का महत्वपूर्ण समय है आधे स्टाफ़ को ग्रामीण और शहरी ओलम्पिक के हवाले कर दिया है।इसके बाद युवा महोत्सव में शिक्षकों की बड़ी संख्या में ड्यूटी लगाई जाएगी।  साथ में ही एक लाख अड़तीस हज़ार लेवल - एक के शिक्षकों को फिर प्रशिक्षण की भेंट चढ़ा दिया जाएगा । पिछले साल तीन लाख का नामांकन प्रदेश में कम हुआ था ।इस बार ये आँकड़ा ओर बड़ा होगा। लेकिन दुर्भाग्य है कि शिक्षा विभाग का अधिकारी वर्ग मौन धारण किए हुए है ।किसी भी प्रकार का कोई भी आदेश , जिसमें शिक्षा विभाग की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए , जो ऊर्जा बच्चों के शैक्षिक उन्नयन और उत्थान में लगनी चाहिए , वह ऊर्जा बाबूगिरी में लगाई जा रही है।अन्याय , और जुल्म करने वाला ही ख़राब नहीं होता है, अन्याय और जुल्म को सहने वाला और मौन रहने वाला भी सार्वजनिक शिक्षा को ख़त्म करने का भागीदार होता है।जिस तरह शिक्षा विभाग के अधिकारी और कुछ संस्था प्रधान मौन हो रहे हैं, ये मौन पुरखों की विरासत को ख़त्म करने की मौन स्वीकृति होगी। जिस दिन सार्वजनिक शिक्षा के ख़ात्मे का इतिहास लिखा जाएगा , उस दिन मेरे तमाम ज़िंदादिल साथी जो बहादुरी से इस विरासत को बचाने के लिए संघर्षरत हैं । सार्वजनिक शिक्षा को बचाने वालों में उनका नाम लिखा जाएगा, और जो लोग मौन हैं उनका नाम साज़िश कर्ताओं के साथ इस विरासत को ख़त्म करने वालों में नाम लिखा जाएगा। सिरोही जिले की प्रशासनिक व्यवस्था सम्पूर्ण राजस्थान में सबसे भिन्न है। सिरोही उपखंड में विगत पांच सात माह में सभी लिपिकों को बीएलओ कार्य से मुक्त कर शत प्रतिशत शिक्षकों को बीएलओ कार्य में लगाने की मूहिम जोरों पर चल रही है। जबकि चुनाव आयोग की गाइड लाइन में लिपिक पहले नम्बर पर तथा शिक्षक विकल्पों में सोलह नम्बर पर है। बीएलओ के बाद बचे शिक्षक सिरोही जिले में प्रशासनिक , तहसील तथा अन्य कार्यालयों में लिपिक का कार्य कर रहे।कुछ चुनिंदा अध्यापक, वरिष्ठ अध्यापक वर्षों से उपखण्ड, तहसील तथा विभिन्न गैर शैक्षणिक कार्यालयों में लिपिकीय कार्य कर रहे हैं। अपनी सरकारी शिक्षा विभाग की नौकरी की आधे से ज्यादा सेवा गैर शैक्षणिक कार्यों में दी है। सिरोही जिले के प्रशासनिक अधिकारी बदलते हैं लेकिन वो शिक्षा विभाग के कार्मिक अनेकानेक वर्षों से गैर शैक्षणिक कार्यों को करने हेतु प्रशासनिक कार्यालयों में लगे रहे हैं। जिसमें चुनाव कार्यों को विशेष ढाल बनाकर रखते हैं।सिरोही जैसे आशान्वित जिले के सरकारी विद्यालयों के विद्यार्थियों के साथ कुठाराघात हो रहा है । कर्मचारी नेता राव ने सम्पूर्ण तथ्यात्मक रिपोर्ट महामहिम राज्यपाल कलराज मिश्र तथा सूबे के मुख्यमंत्री मंत्री अशोक गहलोत को भेजकर सिरोही जिले के सरकारी विद्यालयों के विद्यार्थियों के हित में ठोस कार्यवाही कर राहत देने की गुहार की।राव ने सिरोही के सभी सजग जन प्रतिनिधियों से छात्र हित में सहयोग की अपील की ।

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