मेह बरस्यां पछै मायड़ धरती रा रूप ही निराळा व्है जी
______________ आली बाळू रेत देखनै टाबर थरपै गोगा / मुंडै मुळकै हेत धरा रो हेठां नागा-पोगा / ____…
______________ आली बाळू रेत देखनै टाबर थरपै गोगा / मुंडै मुळकै हेत धरा रो हेठां नागा-पोगा / ____…
जब मिली एक बार जिन्दगी मेरी , वो जिन्दगी ही बन गयी बंदगी मेरी ये इतनी हसीन होगी ,पता …
नवोदित कवियों के उत्साहवर्धन हेतु रचित रचना जो एक देश के सुनामधन्य वरिष्ठ कवि को मेरा प्रत्युत्त…
न जाऊँ मैं मंदिर,, न जाऊँ शिवाला मैं पूजु उसे जिसने, मुझको है पाला। अपनों से ज्यादा, …
कभी कभी जब खुद पर ही झुँझलाहट आ जाती हैं और गगन में कोई काली बदली सी छा जाती हैं तब निज मन …
छुपा कब तक रहेगा चांद बादल मेँ पता तो हो रहेंगे पाव कब तक केद पायल मेँ पता तो हो जमाने से बगावत …
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