एक आईना भारत
सोजत कुलदीप सिंह
बिटिया को जीवन धन दो
स्नेहपूर्ण अपनापन दो।
यही शारदा, लक्ष्मी, काली,
यही प्रेम बगिया की माली,
उड़ने को विस्तृत गगन दो।
यह मां बेटी और बहू है,
इसमें प्रसरित होत लहू है।
इसे बचाओ अन्तर्मन दो।
भारत देश ने अपने रीति रिवाजों तथा संस्कृति से पूरे विश्व पर अपनी अनोखी छाप छोड़ी है। गुलामी की जंजीरों से निकलकर भारत ने विज्ञान,चिकित्सा तथा तकनीक के क्षेत्र में बहुमुखी विकास किया है। परंतु हर सिक्के के दो पहलू होते हैं इस आधुनिक मशीनी युग ने भारत में कई समस्याओं का समाधान करने के साथ साथ इस मशीनी युग ने मानव समाज में अपराधों को भी बढ़ावा दिया ।उदाहरण के तौर पर लिंग परीक्षण जांच जैसी तकनीक से उपचार की आशा की जाती थी परंतु इस तकनीक ने कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराधों को बढ़ाकर नारी के अस्तित्व को ही पतन की ओर धकेल दिया । समाज में बढ़ते इस अभिशाप के लिए पूर्णतः अल्ट्रासाउंड जैसी तकनीक को दोष देना भी गलत होगा क्योंकि भारतीय समाज में बच्चियों को सामाजिक व आर्थिक बोझ के रूप में माना जाता है तथा यह भी मिथक प्रचलित है कि भविष्य में पुत्र ही वंश को आगे बढ़ाएगा जबकि लड़कियां पति के घर के नाम व वंश को आगे बढ़ाती है। सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या जैसे कलंक को मिटाने के लिए कठोर कदम उठाए हैं और सरकार के द्वारा उठाए गए कदम सराहनीय भी है परंतु जब तक समाज को जागरूक व शिक्षित नहीं किया जायेगा तब तक नारी के अस्तित्व को बचाना संभव नहीं होगा। वर्तमान में बढ़ते इस अभिशाप से यह प्रतीत होता है कि अल्ट्रासाउंड जैसी तकनीक उपचार के लिए वरदान साबित न होकर समाज में नारी के लिए अभिशाप साबित हुई है । सरकार ने कुप्रथा से बने इस जघन्य अपराध को रोकने हेतु महिलाओं को सरकारी नौकरी तथा स्थानीय निकाय में महिलाओं के पद के आरक्षित करने जैसे कई सराहनीय कदम उठाए हैं। परंतु आशा स्वरूप सरकार के प्रयास सफल नहीं हो रहे हैं। वर्तमान परिस्थिति में इसके बढ़ते मामलों से हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है। इन उपायों के अलावा निम्न कदमों से इसकी वृद्धि पर लगाम लगाई जा सकती है :-
1.महिला शिक्षा को बढ़ावा देना होगा।
2.चिकित्सा संबंधी नियमों को कठोरता से लागू करना होगा।
3.सरकार के अलावा युवाओं को अपने घरों, गली-मोहल्लो तथा समाज में बेटियों को शिक्षा प्रदान करवाने के लिए जन जन को प्रोत्साहित करना होगा ।
4.दहेज प्रथा जैसी कुप्रथा इस अपराध की वृद्धि में सहायक रही है।अतः युवाओं को दहेज प्रथा जैसी कुरीति को मिटाना होगा जिससे माता-पिता अपनी बच्ची को आर्थिक बोझ न समझें ।
5.महिला को शिक्षित कर उसे आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार को विभिन्न योजनाओं को लाना होगा ताकि समाज से यह अपराध विलोपित हो सके।
6.समाज में प्रचलित मिथकों, कुप्रथाओं व रीति रिवाजों को समाज के वरिष्ठ जनों अथवा नेताओं द्वारा मिटाना होगा।
7.पुरुषवादी समाज की परिभाषा को बदलकर समाज में महिलाओं को उचित स्थान देना होगा ।
8.इस अपराध में लिप्त पाए जाने पर कठोर से कठोर सजा का प्रावधान करना होगा।
हम निम्नलिखित बिंदुओं को अपनाकर समाज में फैले इस कलंक को मिटा सकते हैं और तभी हम भारतीय संस्कृति में नारी के अस्तित्व को बचा सकेंगे और नारी को देवी के रूप में पूज सकेंगे , राजकवि राजेश कुमावत,अध्यापक,कवि,लेखक
सोजत कुलदीप सिंह
बिटिया को जीवन धन दो
स्नेहपूर्ण अपनापन दो।
यही शारदा, लक्ष्मी, काली,
यही प्रेम बगिया की माली,
उड़ने को विस्तृत गगन दो।
यह मां बेटी और बहू है,
इसमें प्रसरित होत लहू है।
इसे बचाओ अन्तर्मन दो।
भारत देश ने अपने रीति रिवाजों तथा संस्कृति से पूरे विश्व पर अपनी अनोखी छाप छोड़ी है। गुलामी की जंजीरों से निकलकर भारत ने विज्ञान,चिकित्सा तथा तकनीक के क्षेत्र में बहुमुखी विकास किया है। परंतु हर सिक्के के दो पहलू होते हैं इस आधुनिक मशीनी युग ने भारत में कई समस्याओं का समाधान करने के साथ साथ इस मशीनी युग ने मानव समाज में अपराधों को भी बढ़ावा दिया ।उदाहरण के तौर पर लिंग परीक्षण जांच जैसी तकनीक से उपचार की आशा की जाती थी परंतु इस तकनीक ने कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराधों को बढ़ाकर नारी के अस्तित्व को ही पतन की ओर धकेल दिया । समाज में बढ़ते इस अभिशाप के लिए पूर्णतः अल्ट्रासाउंड जैसी तकनीक को दोष देना भी गलत होगा क्योंकि भारतीय समाज में बच्चियों को सामाजिक व आर्थिक बोझ के रूप में माना जाता है तथा यह भी मिथक प्रचलित है कि भविष्य में पुत्र ही वंश को आगे बढ़ाएगा जबकि लड़कियां पति के घर के नाम व वंश को आगे बढ़ाती है। सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या जैसे कलंक को मिटाने के लिए कठोर कदम उठाए हैं और सरकार के द्वारा उठाए गए कदम सराहनीय भी है परंतु जब तक समाज को जागरूक व शिक्षित नहीं किया जायेगा तब तक नारी के अस्तित्व को बचाना संभव नहीं होगा। वर्तमान में बढ़ते इस अभिशाप से यह प्रतीत होता है कि अल्ट्रासाउंड जैसी तकनीक उपचार के लिए वरदान साबित न होकर समाज में नारी के लिए अभिशाप साबित हुई है । सरकार ने कुप्रथा से बने इस जघन्य अपराध को रोकने हेतु महिलाओं को सरकारी नौकरी तथा स्थानीय निकाय में महिलाओं के पद के आरक्षित करने जैसे कई सराहनीय कदम उठाए हैं। परंतु आशा स्वरूप सरकार के प्रयास सफल नहीं हो रहे हैं। वर्तमान परिस्थिति में इसके बढ़ते मामलों से हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है। इन उपायों के अलावा निम्न कदमों से इसकी वृद्धि पर लगाम लगाई जा सकती है :-
1.महिला शिक्षा को बढ़ावा देना होगा।
2.चिकित्सा संबंधी नियमों को कठोरता से लागू करना होगा।
3.सरकार के अलावा युवाओं को अपने घरों, गली-मोहल्लो तथा समाज में बेटियों को शिक्षा प्रदान करवाने के लिए जन जन को प्रोत्साहित करना होगा ।
4.दहेज प्रथा जैसी कुप्रथा इस अपराध की वृद्धि में सहायक रही है।अतः युवाओं को दहेज प्रथा जैसी कुरीति को मिटाना होगा जिससे माता-पिता अपनी बच्ची को आर्थिक बोझ न समझें ।
5.महिला को शिक्षित कर उसे आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार को विभिन्न योजनाओं को लाना होगा ताकि समाज से यह अपराध विलोपित हो सके।
6.समाज में प्रचलित मिथकों, कुप्रथाओं व रीति रिवाजों को समाज के वरिष्ठ जनों अथवा नेताओं द्वारा मिटाना होगा।
7.पुरुषवादी समाज की परिभाषा को बदलकर समाज में महिलाओं को उचित स्थान देना होगा ।
8.इस अपराध में लिप्त पाए जाने पर कठोर से कठोर सजा का प्रावधान करना होगा।
हम निम्नलिखित बिंदुओं को अपनाकर समाज में फैले इस कलंक को मिटा सकते हैं और तभी हम भारतीय संस्कृति में नारी के अस्तित्व को बचा सकेंगे और नारी को देवी के रूप में पूज सकेंगे , राजकवि राजेश कुमावत,अध्यापक,कवि,लेखक
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