एक आईना भारत / सेतरावा
(रायसर)
सेतरावा - राजस्थानी कवि साहित्यकार मदनसिंह राठौड़ सोलंकियातला ने इस लॉकडाउन के दौरान गर्मी के भयंकर प्रकोप को देखते हुए पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करने हेतु मायड़ भाषा में कविता बनाकर लोगों को अपने घरों के पास परिंदे लगाने का संदेश दिया ।
कविता इस प्रकार है -
पांणी पावौ पंछियौं
सरवर नाडा सूखिया, पांणी गयौ पंयाळ।
तड़फै पंछी तावड़ै, रूंख तणी रखवाळ।।
पांणी पावौ पंछियौं, दया भाव दरसाय।
तिरसां मरता तड़फड़ै, मझ लूवां रै मांय।।
दरखत मोटौ देखनै, छींका बांधौ छांव।
भर भर भलपण भाव सूं,पंछी नै जळ पाव।।
बळती बाजै देखलौ, लपका करती लाय।
तपती मांही तरसिया, पंछी पांणी पाय।।
छींका बांधौ चौवटै, निरमळ भरणौ नीर।
पंखी जळबिन तरसिया,आंधी मांय अधीर।।
रचयिता
मदनसिंह राठौड़ सोलंकिया तला
(रायसर)
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पांणी पावौ पंछियौं - कविता बनाकर दिया संदेश |
सेतरावा - राजस्थानी कवि साहित्यकार मदनसिंह राठौड़ सोलंकियातला ने इस लॉकडाउन के दौरान गर्मी के भयंकर प्रकोप को देखते हुए पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करने हेतु मायड़ भाषा में कविता बनाकर लोगों को अपने घरों के पास परिंदे लगाने का संदेश दिया ।
कविता इस प्रकार है -
पांणी पावौ पंछियौं
सरवर नाडा सूखिया, पांणी गयौ पंयाळ।
तड़फै पंछी तावड़ै, रूंख तणी रखवाळ।।
पांणी पावौ पंछियौं, दया भाव दरसाय।
तिरसां मरता तड़फड़ै, मझ लूवां रै मांय।।
दरखत मोटौ देखनै, छींका बांधौ छांव।
भर भर भलपण भाव सूं,पंछी नै जळ पाव।।
बळती बाजै देखलौ, लपका करती लाय।
तपती मांही तरसिया, पंछी पांणी पाय।।
छींका बांधौ चौवटै, निरमळ भरणौ नीर।
पंखी जळबिन तरसिया,आंधी मांय अधीर।।
रचयिता
मदनसिंह राठौड़ सोलंकिया तला
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महेंद्रसिंह भाटी
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