जहाज मंदिर में मनाई दादा गुरुदेव जिनदत्तसूरि की 866 वीं पुण्यतिथि

जहाज मंदिर में मनाई दादा गुरुदेव जिनदत्तसूरि की 866 वीं पुण्यतिथि

आज जहाज मंदिर परिसर में गच्छाधिपति आचार्य जिनमणिप्रभसूरि महाराज एवं आचार्य जिनमनोज्ञसूरि महाराज आदि 37 साधु साध्वियों के सानिध्य में दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरि की 866वीं पुण्यतिथि मनाई गई।
इस अवसर पर साधु साध्वियों के बीच प्रवचन देते हुए गच्छाधिपति आचार्य जिनमणिप्रभसूरि ने कहा- गुरुदेव जिनदत्तसूरि ने आज से 850 से 900 वर्ष पूर्व भारत वर्ष में स्थान-स्थान पर भ्रमण करके संस्कारों की अलख जगाई थी। उन्होंने उस समय में लाखों परिवारों को शराब, जुआ आदि दुर्गुणों व व्यसनों से दूर किया था।
उन्होंने अपने इस संस्कार अभियान में जाति या वर्ण व्यवस्था का कोई भेद नहीं था। उनसे संस्कार पाने में क्षत्रिय, वैश्य, ब्राह्मण, शूद्र सभी जाति के लोग थे।
उन्होंने कहा- वर्तमान वातावरण में वैसी ही अलख जगाने की अनिवार्यता उपस्थित हो गई है। युवा पीढी लगातार व्यसनों के चंगुल में फंस कर अपना जीवन नष्ट कर रही है। सभी धर्माचार्यों को समस्त प्रकार की साम्प्रदायिक कट्टरताओं का त्याग कर एक होकर संस्कारों को जगाने का अभियान चलाना चाहिये।
मुनि मनितप्रभसागर ने कहा- दादा गुरुदेवों के उपकारों का हमें स्मरण कर हमें कुलीनता और कृतज्ञता इन गुणों का विकास करना चाहिये। उन्होंने व्यसन मुक्ति का जो कार्य किया, उसे और गतिमान करना चाहिये।
मुनि मेहुलप्रभसागर ने दादा गुरुदेव की रचनाओं का इतिहास बताया। उन्होंने कहा- उनका जीवन त्याग और साधना को पूर्ण रूप से समर्पित था।
इस अवसर पर मुनि नयज्ञसागर, मुनि महितप्रभसागर, साध्वी अनंतदर्शनाश्रीजी, साध्वी मयूरप्रियाश्रीजी, साध्वी अर्हंनिधिश्रीजी ने अपने विचार प्रस्तुत किये।
यह जानकारी जहाज मंदिर ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष प्रकाश छाजेड ने दी।
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