वर्तमान समाज में स्त्री की भूमिका व सामाजिक अंतर्विरोध :- डॉ सुरेश गर्ग प्राचार्य

वर्तमान समाज में स्त्री की भूमिका व सामाजिक अंतर्विरोध :- डॉ सुरेश गर्ग प्राचार्य


समाज में स्त्री को लेकर आरंभ से ही दो धारणाएं प्रचलित रही एक श्रद्धा तो दूसरी वस्तु, जननी होने के कारण स्त्री को श्रद्धा के रूप में देखा गया है तो पुरुष प्रधान समाज में नारी को भोग्या के रूप में वस्तु बनाकर रख  दिया, भारतीय समाज में दुर्गा काली के रूप में पूजा होती थी वही वैदिक काल में पुरुष के समान स्त्रियों को अधिकार भी प्राप्त थे, वर्तमान में समाज के विकास के साथ सामाजिक परिवर्तन के कारण जो स्त्री शारदा थी वही वस्तु कब बन गई पता नहीं चला, पुरुष प्रधान समाज ने धीरे-धीरे स्त्री के वर्चस्व को खत्म किया बाद में उसे पूर्ण पुरुष पर निर्भर कर दिया और उसकी श्रद्धा वाली गरिमा को समाप्त कर दिया, वैदिक युग में स्त्री को पुत्री, पत्नी, मां, होने की जो प्रतिष्ठा प्राप्त थी, आधुनिकता के आगमन से उसकी तस्वीर बदली उसे पुत्री पत्नी मां का दर्जा तो मिल रहा है परंतु वर्तमान व्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा वही ठगी जा रही है, उसे अधिकार तो मिल रहे हैं परंतु अधिकारों को प्राप्त करने में आज भी साहस जुटाना पड़ रहा है वैदिक युग के शुरू के काल को छोड़कर हरदम नारी पुरुष की अधीनता में रहती आई है, समाज में पुरुष को कुछ ऐसे अधिकार थे उनकी कुछ ऐसी स्वतंत्रता ए थी जिनसे स्त्रियां वंचित थी, स्त्री और पुरुष के निजी और सामाजिक आचरण की अच्छाई बुराई के मानदंड भिन्न थे, आधुनिकता के इस दौर में स्त्री का दामन अन्याय ने पकड़ रखा है, शिक्षा के कारण नारी की सोच में तो बदलाव आया है लेकिन नारी के मामले में पुरुष प्रधान समाज की सोच शिक्षित होने के बावजूद नारी के प्रति संकुचित ही रही है, इसलिए समाज में आज भी नारी के साथ अन्याय हो रहा है स्त्री ने अपना अस्तित्व बनाए रखने और हक को पाने के लिए न जाने कितनी पीड़ा झेली और न जाने कितने ही संघर्ष और विडंबनाओ के दौर से गुजरी है,
भारतीय समाज को स्वतंत्रता मिल गई लेकिन इस आजादी के बाद भी स्त्री की स्थिति आज भी परतंत्रता लिए हुए है, और वहां अपनी स्वतंत्रता की जद्दोजहद के अंतर्विरोध से गिरी हुई है, क्योंकि समानता व स्वतंत्रता ही उसका आत्मसम्मान है, सर्वप्रथम घर की चारदीवारी में सम्मान की चाहत रखने वाली नारी विश्व में पुरुषों के समान अधिकारों को हासिल करना चाहती है, क्योंकि उसे आज भी पुरुषों के समान समाज में अधिकार नहीं मिले स्त्री जहां पंछी की तरह आजाद आकाश में उड़ना चाहती है वहां पुरुष उसे पिंजरे में कैद रखना चाहता है, यह सामाजिक अंतर्विरोध का एक अहम कारण है, वर्तमान नारी के साथ हर रोज बलात्कार, हत्या, अपहरण, दहेज उत्पीड़न, शोषण, देखने को मिलता है और इसका जिम्मेदार कहीं ना कहीं वर्तमान व्यवस्था में पुरुष प्रधान समाज है, क्योंकि वह नारी शब्द को ही गुलामी का पर्यायवाची समझता है, उसकी नजर में नारी सेवा के लिए ही पैदा हुई है, और उसे पुरुषों के अधिकारों में ही रहना पड़ेगा,, महानगरों में स्त्री के अस्तित्व के प्रति सम्मान का भाव नहीं है जो स्तरीय उच्च पदस्थ है जिनका सत्ता और राजनीति से संबंध है या धनबल रखती है उनके प्रति कभी सत्य और कभी छद्म का भाव दिखाया जाता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि संविधानता का दावा करने वाला स्त्री को ऐसी तैसी करने में महानगरीय जीवन  भी पीछे नहीं कस्बों और गांवों की बात हुई क्या, स्त्री की अस्मिता के प्रश्न चाहे पश्चिमी हो या भारतीय दोनों समान है, फिर पश्चिमी आधुनिकरण की प्रक्रिया या भारतीय आर्थिक निर्भर होने से पुरुष प्रधान समाज के अहं पर चोट हुई है, पश्चिम में स्वतंत्रता मुख्य लक्ष्य है वह भी मानवता का भारतीय समाज स्वतंत्रता मन में रखता है लेकिन नारी स्वतंत्रता उसकी आंख का कांटा है वह स्वीकार नहीं कर पाता, तभी तो समाज में हो रही भ्रूण हत्या, दहेज,,बलात्कार, अपहरण, हर रोज देखने को मिलते हैं नारी अत्याचार सहन करने के कारण अपने मन में समाज के प्रति अंधविरोधियों को देखती है यह विसंगतियां उसके जीवन में बाधा पहुंचाती है, शिक्षा के माध्यम से आगे बढ़ना चाहती है उसके रास्ते में आने वाली कठिनाइयों ही उसके अंतविरोध है, स्त्री के आत्मकथ्य का समयक विश्लेषण उसका व्यवहारिक जीवन उसके मन के कोने, अंतरे, दरारे, चोट और पीड़ा नस्ल और रंगभेद, अस्मिता शोषण के विविध आयामी पक्ष उसकी मनोसामाजिक लैंगिक भेद और स्त्री अस्मिता के साथ सहानुभूति की अभिव्यक्ति के लिए अपनाई गई विविध मुद्राएं प्रतिरोध के औजार संपूर्ण और  विवशता के कारणों के साथ सैद्धांतिक रास्ते में आने वाली बाधाएं और समस्या अंतर्विरोध है
,समाज के दंड विधान व्यवस्थाओं रीति-रिवाजों परंपराएं हमेशा ही नारी के लिए सीमाएं बनी है उसका जीवन तलवार की धार है वर्तमान में भी यही व्यवस्था है नारी के लिए अंतर्विरोध को बल देता है जिसको हम नारी प्रताड़ना कर सकते हैं व्यक्ति समाज की इकाई नहीं बल्कि समाज की इकाई स्त्री और पुरुष का युग्म होता है नारी अत्याचार सहन करने के कारण अपने मन में समाज के प्रति अंतर्विरोध को देखती है यहां विश्व बतिया उसके जीवन में बाधा पहुंच आती है मां शिक्षा के माध्यम से आगे बढ़ना चाहती है उसके रास्ते में आने वाली कठिनाई आई उसके अंतर्विरोध है 
*डॉ सुरेश गर्ग प्राचार्य श्री परमहंस स्वामी माधवानंद महाविद्यालय जाडन पाली*
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