कहानी -'मूक प्रेम' (अनकहें प्यार की अजब दास्तान)
डॉ. संतोष विश्नोई
सहायक प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, कॉलेज शिक्षा,
दिल्ली-एनसीआर
शालिनी अपने मम्मी पापा के साथ मंजर के घर आयोजित पार्टी से सीधा अपने घर आयी और अपने आप को एक कमरे में बंद कर लिया। आज पार्टी में जो कुछ हुआ उसका शालिनी को बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसका का प्यार या दोस्त मंजर इस कदर बदल सकता है।
शालिनी का बचपन से ही सपना था सिविल सर्विस की परीक्षा पास करके देश की सेवा कर सके। जिसको पूरा करने के लिए स्नातक करते ही शालिनी दिल्ली चली आयी। दिल्ली में उसकी मुलाकात मंजर से हुई। शान्त, गंभीर और पढ़ने में अव्वल आने वाला मंजर जल्द ही शालिनी का अच्छा दोस्त बन गया।
मंजर और शालिनी पिछले पाँच साल से एक साथ दिल्ली में इस परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। उसने और मंजर ने बहुत सारे सपने एक साथ बुने थे। सोचते थे एक साथ नौकरी करते हुए भी दोनों के बीच दूरियां नहीं आने देंगे। हर सुख दुःख में साथ देंगे। इस दोस्ती में अपनापन, प्यार और एक - दूसरे के प्रति ख्याल सब कुछ था। इस विश्वास के साथ दोनों आगे बढ़ रहे थे। पाँच साल मुखर्जी नगर में रहते हुए कैसे बीत गए पता ही नहीं चला।
दोनों ने परीक्षा एक साथ ही दी, मुख्य परीक्षा तक दोनों ने साथ रास्ता तय किया था। लेकिन किस्मत को आगे क्या मंजूर था कह नहीं सकते। साक्षात्कार की परीक्षा में शालिनी का चयन नहीं हो पाया। शालिनी का चयन नहीं होने के बाद भी उसे सुकून था कि मंजर का चयन हो गया। वो बहुत खुश थी। उसे अपने चयन नहीं होने का इतना दुःख नहीं हुआ।
आज मंजर के चयन होने की खुशी में ही उसके घर पर एक पार्टी रखी गयी थी। शालिनी को भी अपने मम्मी पापा के साथ बुलाया था। शालिनी को अनजाने ही लग रहा था उसके मम्मी पापा को अपने घर बुला रहे है तो जरूर रिश्तें को आगे बढ़ाने की बात भी होगी। लेकिन आज ऐसा कुछ नहीं हुआ। पार्टी में ही मंजर के पापा ने घोषणा की थी-बेटे के नौकरी में सेलेक्शन के बाद जल्द ही अच्छी लड़की देख कर शादी करेंगे और आप सब लोगों को एक बार फिर से आमंत्रित करेंगे। उस समय मंजर ने भी कुछ नहीं कहा। अपने पिता की बात का मूक समर्थन दे दिया।
शालिनी वहीं खड़े खड़े सोचती रही -अच्छी लड़की का क्या मतलब??? क्या मैं मंजर को समझने वाली और उसकी दोस्त नहीं हूँ.... जीवन भर साथ देने के उस वादे का क्या हुआ....?? ये सुनने के बाद उसका मन उस पार्टी से उचट गया। उसे उस पार्टी में आना व्यर्थ और अपमानजनित भी लग रहा था। जैसे तैसे पार्टी के खत्म होने से पहले ही मम्मी पापा को लेकर घर आ गयी। शालिनी को घर आते हुए मंजर ने देखा भी था लेकिन न उसने रोका न जल्दी जाने की वजह पूछी। ये सब शालिनी को और असहनीय लगा।
घर आकर भी उसकी बैचेनी कम होने के बजाय बढ़ती गयी। उसके और मंजर की दोस्ती को दोनों घर ने सहर्ष स्वीकार किया था। एक वजह ये भी है कि शालिनी के लिए ये ओर दर्द भरी स्थिति थी। उसे लग रहा था उसकी वजह से उसके मम्मी पापा को भी लज्जित होना पड़ा है। नहीं वो ऐसे हार नहीं मान सकती। सिर्फ परीक्षा में पास होने मात्र से व्यक्ति को इतना नहीं बदलना चाहिए था। अपनी आज की स्थिति का वह मुंहतोड़ जवाब देगी। शालिनी ने दृढ़ निश्चय कर लिया वह कल फिर से दिल्ली चली जाएगी। अपनी नए सिरे से तैयारी करेगी।
अगले दिन शालिनी दिल्ली चली गयी। इस बार पुरानी शालिनी की जगह बिल्कुल नए रूप में शालिनी दिल्ली में आई थी में आई थी। न किसी से ज्यादा बातचीत न किसी से कोई दोस्ती। सिर्फ अपने आपको किताबों तक समेट लिया था। सबसे खास बात पिछली घटना से उसके दिल और अहम् पर चोट हुई थी। अब उसका सिर्फ एक लक्ष्य था - कैसे भी अपने आपको, अपनी काबिलियत को साबित करना।
रात दिन कठोर परिश्रम से एक बार फिर से शालिनी ने सिविल सर्विस की परीक्षा दी। प्रारंभिक, मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार से लेकर परिणाम आने तक एक दिन भी उसने चैन से बैठ कर नहीं बिताया। और आखिर वो दिन भी आ गया जब उसको परीक्षा में सफल होने की सूचना मिल गयी। उसको खुशी थी कि उसने अपने आप को साबित कर दिया। लेकिन दिल के एक कोने से आवाज़ भी आयी कि क्या यही उसका अंतिम लक्ष्य था। जीवन में ऊंच नीच, सफलता असफलता तो चलती रहती है। आज उसे मंजर की याद आ रही याद आ रही की याद आ रही याद आ रही थी, अपने उस पुराने प्यार की भी। अगले ही पल उस दिन की घटना स्मरण होते ही यादों की तस्वीर पर धुंधलापन छा छा गया। थोड़े दिनों बाद उसको नियुक्ति पत्र मिल गया और एक नई जगह पर अपनी नई मंजिल की ओर नई मंजिल की ओर चली गई।
कुछ समय बिता।
एक दिन छुट्टी वाले दिन शालिनी अपने बंगले के लॉन में बैठी हुई थी। शालिनी के मम्मी पापा उसको बिना बताऐ उससे मिलने आए। उनको देखकर शालिनी बहुत खुश हुई ।
उसके मम्मी ने कहा कि हमारे साथ कुछ मेहमान भी आए है। जरा बाहर जाकर देखो। उसने नजर उठा कर कर गेट की और देखा तो सामने मंजर और उसके मम्मी पापा थे।
मंजर को देखकर शालिनी के चेहरे पर एक बार फिर दुख की रेखाएँ उभर आई। वह मंजर का सामना नहीं करना चाहती थी तो दूसरे कमरे में चली गई। थोड़ी देर बाद मंजर भी उसी कमरे में आया। शालिनी ने उसकी ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा।
मंजर ने ही बात शुरू करने के ढंग से कहा- लगता है शालिनी तुम मुझसे बहुत नाराज हो?
शालिनी ने कुछ नहीं कहा।
मंजर - शालिनी मुझे माफ कर दो, मैंने यह सबकुछ जानबूझकर और तुम्हारे भले के लिए ही किया था।
शालिनी ने तिरस्कार के भाव से मंजर की ओर देखा और सवाल किया -हुह्ह मेरे भले के लिए..? क्या किया था तुमने जानबूझकर? ज़रा मैं भी सुनूँ?
मंजर -हम दोनों ने एक सा सपना देखा था - सिविल सर्विस में चयन होने का। उस दिन जब तुम्हारा चयन नहीं हुआ और मेरा होने के बाद मैंने देखा तुमने इसमें अपनी संतुष्टि खोज ली। तुम अपने सपने को मेरे खातिर भुलाने लगी थी। मैंने तुम्हें कई बार समझाने की कोशिश भी की थी कि तुम अपने लक्ष्य पर ध्यान लगाओ। लेकिन तुम मेरे प्यार में इस कदर खोती जा रही थी कि अपना स्वतंत्र अस्तित्व की बजाय मेरे अंदर अपना अक्स देखने लगी।
शालिनी मंजर की बात सुनकर क्रोधित हो गयी।
आगे शालिनी ने कहा-अच्छा, तो अब कहोगें ये सब तुम्हारा सोचा समझा नाटक था??? विश्वास नहीं होता मंजर तुम इस हद तक झूठ बोलोगें मुझसे।
मंजर -नहीं शालिनी, मैं झूठ नहीं बोल रहा। मुझे लग रहा था एक दिन तुम शायद इस चीज का मलाल करो। मुझे ये मंजूर नहीं था। तुम में प्रतिभा थी। मैं चाहता था तुम्हारी प्रतिभा निखर कर सबके सामने आये। इसके लिए मैंने एक तरीका खोजा। सबसे पहले तुम्हारे मम्मी पापा को सब कुछ बताया और उनसे मेरा साथ देने की विनती की। अपने मम्मी पापा को भी मैंने तुम्हारे बारे में बात कर ली थी। मैंने सबको बताया था परिणाम चाहे कुछ भी आये मैं जीवन भर शालिनी के साथ रहूँगा। थोड़ा समय लगेगा लेकिन मेरी शालिनी अपने दम पर खड़ी हुई मिलेगी।.... और शालिनी तुमने मेरा भरोसा तोड़ा नहीं। तुमने कर दिखाया। मैंने हर कदम पर तुम्हारी खैर खबर लेता रहा था। यहाँ तक की मैं खुद भी कई बार दिल्ली आया था, तुम को दूर से ही देख कर चला जाता था। कहते कहते मंजर की आँखे नम हो गयी।
शालिनी कुछ समझ पाती तभी उसके मम्मी- पापा कमरे में दाखिल हुए।
शालिनी के पापा-बेटा शालिनी, मंजर को गलत मत समझना। उसने तुम्हारे लिए बहुत कुछ सहन किया है। तुम को लेकर हमसे भी ज्यादा फ़िकर मंजर को थी। इसने प्रोग्राम से पहले ही घर आकर तुम्हारा हाथ माँग लिया था। और बताया कि वो तुमसे बहुत प्यार करता है। हमारे लिए इससे ज्यादा खुशी की बात क्या हो सकती थी।
शालिनी की माँ-हाँ बेटा, तुम्हारे पापा सही कह रहे हैं। मंजर ने तुम्हारे अलावा कभी किसी के बारे में इतना नहीं सोचा। मंजर ने ही बताया कि शालिनी को उसके प्यार की भनक नहीं पड़ने देनी है। तुम्हारे भविष्य को लेकर उसने ही अपने प्यार की कुर्बानी देते हुए तुम्हें अपने लक्ष्य की ओर प्रेरित किया।
शालिनी अचंभित से खड़ी कुछ समझ नहीं पा रही थी।
तभी मंजर के मम्मी पापा भी कमरे में आ गए।
मंजर की माँ बोली - शालिनी मंजर तुमसे बेंइंतहा प्यार करता है। हम नहीं जानते तुमने ऐसा क्या जादू किया है इस पर। लेकिन इसने खुद परीक्षा देने से पहले ही हमें कह दिया था माँ पापा शालिनी मेरी जिंदगी का एक अहम् हिस्सा है। चाहे आगे जैसा भी परिणाम हो।........हम भी तुम दोनों की जोड़ी से बहुत खुश थे। तुम्हारे मम्मी पापा से भी हम पहले ही मिल कर सब कुछ तय कर चुके थे। उस दिन प्रोग्राम में ही हम तुम्हें कंगन पहना कर अपनी बहु बनने वाले थे।लेकिन एनवक्त पर मंजर ने हम सब को मना कर दिया और तुम्हें कुछ भी कहने से रोक दिया।....तुम्हारा कंगन का नाप तक भी मंजर ने खुद ही दिया था।कह कर मंजर की माँ ने अपने पर्स से कंगन निकाल कर मंजर के हाथ में रखते हुए मंजर को विशेष हिदायत भी दी कि -'अब बहु को मनाने का काम तुम्हारा है।" कह कर वो चारों लोग कमरे से बाहर चले गए।
अब कमरे में सिर्फ शालिनी और मंजर ही थे। शालिनी ये सब सुन कर स्तब्ध थी। उस को कुछ समझ नहीं आ रहा कि वो क्या करें। मंजर भी हाथ में रखे कंगन को देख रहा था और कभी शालिनी के चेहरे की ओर। वो भी असमंजस में खड़ा था। मंजर ने फिर धीरे से शालिनी की तरफ बढ़ा। उसके निकट आकर बोला-शालिनी, मुझे माफ़ कर दो। क्या एक मौक़ा जीवन भर तुम्हारे साथ निभाने का दोगी।.... मैं तुमसे... कुछ कहते हुए मंजर की जुबान लड़खड़ा रही थी।
शालिनी ने नज़र उठा कर मंजर की ओर देखा । तो जैसे उसकी आँखे कुछ नहीं बोल कर भी सब कुछ बोलती हुई प्रतीत हो रही थी। मंजर के प्यार के इस नये और अंजाने रूप के निश्चल प्रेम में शालिनी भी भीग रही थी। फिर भी उसने अपने भावों पर नियंत्रण करते हुए उसकी तरह एकटक देख रही थी।
मंजर ने अपना हाथ उसकी ओर बढ़ा कर प्रेम निवेदन किया। शालिनी मैं तुमसे बहुत......। शालिनी आगे बढ़ कर उसके होंठों पर हाथ रख कर धीरे से फुसफुसाई- शश्श्......... जब इतने समय बिना कहें प्रेम कर सकते हों तो अब कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। शालिनी ने अपना हाथ उसके हाथ में रख थाम लिया। मंजर ने बिना कुछ कहे कंगन उसके हाथ की ओर बढ़ाया, उस कंगन को पहन शालिनी ने अपने प्रेम की मौन स्वीकृति दे दी।
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