शहीद अमृतादेवी को किया याद

शहीद अमृतादेवी को किया याद
कामधेनु सेना ने मनाया खेजड़ली बलिदान दिवस 
363 शहीद हुए बिश्नोई धर्म के अनुयायों की याद में मनाते हैं खेजड़ली बलिदान दिवस: राष्ट्रीय अध्यक्ष
पेड़ हमारी प्राकृतिक धरोहर है, इनकी सुरक्षा हमारा कर्तव्य है सेन
एक आइना भारत / नागौर 

कामधेनु सेना के राष्ट्रीय कार्यालय में शहीद अमृतादेवी के चित्रपट्ट पर पुष्पमाला अर्पित कर बलिदान दिवस मनाया गया। कामधेनु सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रवण सेन ने बलिदान दिवस के संदर्भ में बताया दान में सबसे बड़ा दान प्राणों का दान होता है। पर्यावरण संरक्षण हेतु पेड़ों को बचाने के लिए 363 बिश्नोई समाज के लोगों ने प्राणों की आहुति दी। प्रकृति संरक्षण के लिये प्राणोत्सर्ग कर देने की घटनाओं ने समूचे विश्व में भारत के प्रकृति प्रेम का परचम फहराया है. अमृता देवी और पर्यावरण रक्षक बिश्नोई समाज की प्रकृति प्रेम की एक घटना हमारे राष्ट्रीय इतिहास में स्वर्णिम पृष्ठों में अंकित है। सन् 1730 में राजस्थान के जोधपुर से 25 किलोमीटर दूर छोटे से गांव खेजड़ली में यह घटना घटित हुई. अमृतादेवी सहित कुल 363 लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान दे दी। विश्व में ऐसा अनूठा कोई दूसरा उदाहरण नहीं है. "सिर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जाण" को सही साबित कर दिया।
सिर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जाण" और अमृता देवी गुरू जांभोजी महाराज की जय बोलते हुए सबसे पहले पेड़ से लिपट गयी, क्षण भर में उनकी गर्दन काटकर सिर धड़ से अलग कर दिया. फिर तीनों पुत्रियों पेड़ से लिपटी तो उनकी भी गर्दनें काटकर सिर धड़ से अलग कर दिये।
आज सारी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण की चिंता में पर्यावरण चेतना के लिये सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर विभिन्न कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. हमारे धर्मग्रंथ, हमारी सामाजिक कथायें और हमारी जातीय परम्परायें हमें प्रकृति से जोड़ती है। प्रकृति संरक्षण हमारी जीवन शैली में सर्वोच्च् प्राथमिकता का विषय रहा है.
इस दौरान कामधेनु सेना के राष्ट्रीय महासचिव दिपेन्द्रसिंह राठौड़, पूर्व महासचिव श्रवणराम बिश्नोई, अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई सभा के जिलाध्यक्ष रमेश बिश्नोई, अशोक ढाका, जगदीश बिशनोई, आशाराम सियोल, रोहिताश सुथार  पुष्प अर्पित कर शहीद अमृतादेवी को याद किया।

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