जालोर में सिगरेट विवाद का नया मोड़: हाईकोर्ट ने नगर परिषद आयुक्त के निलंबन आदेश पर लगाई रोक, सरकार से मांगा जवाब

जालोर में सिगरेट विवाद का नया मोड़: हाईकोर्ट ने नगर परिषद आयुक्त के निलंबन आदेश पर लगाई रोक, सरकार से मांगा जवाब



जालोर (उजीर सिलावट) - नगर परिषद के कार्यवाहक आयुक्त दिलीप माथुर के सस्पेंशन मामले में बुधवार को राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्वायत्त शासन विभाग द्वारा जारी निलंबन आदेश पर अंतरिम रोक लगाते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। अदालत ने सरकार से इस मामले में दो सप्ताह में जवाब मांगा है।

 पृष्ठभूमि: सिगरेट पीते हुए वीडियो आया था सामने

बता दें कि कुछ दिन पहले नगर परिषद परिसर में आयुक्त दिलीप माथुर को फरियादियों के बीच सिगरेट पीते हुए देखा गया था। यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसके बाद स्वायत्त शासन विभाग के निदेशक जुईकर प्रतीक चंद्रशेखर ने 10 अक्टूबर को आदेश जारी कर माथुर को निलंबित कर दिया था। निलंबन अवधि में उनका मुख्यालय जयपुर स्थित स्थानीय निकाय विभाग निर्धारित किया गया था।

⚖️ कोर्ट में माथुर की दलीलें

माथुर ने अपने अधिवक्ता गिरीश सांखला के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए निलंबन आदेश को चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि उन पर लगाया गया आरोप सेवा नियमों के तहत गंभीर श्रेणी का नहीं है, और बिना सक्षम जांच के निलंबन आदेश जारी किया गया। हाईकोर्ट ने इस पर सहमति जताते हुए निलंबन आदेश को अंतरिम रूप से स्थगित कर दिया और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा।



🏛️ आयुक्त फिर पहुंचे नगर परिषद

कोर्ट के आदेश के बाद गुरुवार सुबह आयुक्त दिलीप माथुर पुनः नगर परिषद जालोर पहुंचे। उन्होंने सबसे पहले कलेक्टर डॉ. प्रदीप के. गवांडे से मुलाकात की और जॉइनिंग के संबंध में मार्गदर्शन मांगा। कलेक्टर ने सरकार से स्पष्ट दिशा-निर्देश मिलने तक इंतजार करने को कहा। इसके बावजूद माथुर अपने आप को आयुक्त बताते हुए नगर परिषद के चैंबर में जाकर बैठ गए। सूत्रों के अनुसार, उन्होंने कर्मचारियों से चैंबर की चाबी जबरन लेकर अंदर प्रवेश किया और दिनभर अपने सरकारी वाहन में भी आवाजाही करते रहे। दूसरी ओर, कार्यवाहक आयुक्त अशोक शर्मा ने कहा कि “सरकार से मार्गदर्शन प्राप्त होने तक पुराने आयुक्त को जॉइन नहीं कराया जा सकता।

🕵️‍♂️ मामला अब प्रशासनिक उलझन में

नगर परिषद में अब यह मामला प्रशासनिक पेचिदगी में फंस गया है। एक ओर हाईकोर्ट का आदेश है, दूसरी ओर सरकार से दिशा-निर्देश आने बाकी हैं। कर्मचारियों में भी स्थिति को लेकर असमंजस बना हुआ है कि फिलहाल किस अधिकारी के आदेश मान्य माने जाएं। फिलहाल सभी की निगाहें सरकार के अगले कदम पर टिकी हैं, जो यह तय करेगा कि दिलीप माथुर को औपचारिक रूप से कार्यभार संभालने की अनुमति मिलेगी या नहीं।

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