आहोर में अंबेडकर समिति का सशक्त विरोध: CJI गवई पर जूता फेंकने की घटना का निंदा, सोनम वांगचुक की रिहाई व लेह-लद्दाख में संवाद की मांग
आहोर,(कास) - डॉ. भीमराव अंबेडकर संघर्ष समिति आहोर ने आज उपखंड अधिकारी आहोर को एक ज्ञापन सौंपकर देश की न्यायपालिका की गरिमा की रक्षा और लेह-लद्दाख के स्वायत्तता आंदोलन में केंद्र सरकार के साथ संवाद स्थापित करने की मांग की। ज्ञापन महामहिम राष्ट्रपति को संबोधित है, जिसमें समिति ने पूर्ण आस्था व्यक्त करते हुए संविधान, लोकतंत्र और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर बल दिया। यह कदम 6 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई पर एक वकील द्वारा जूता फेंकने की घटना के विरोध में उठाया गया, साथ ही पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत हिरासत के खिलाफ आवाज बुलंद की गई।
CJI पर हमले की कड़ी निंदा: 'न्यायिक संस्था पर प्रत्यक्ष आक्रमण'
ज्ञापन में 6 अक्टूबर की घटना का जिक्र करते हुए समिति ने इसे न्यायालय की कार्यवाही में बाधा और "रूल ऑफ लॉ" के मूल्यों पर सीधा हमला बताया। एक वकील राकेश किशोर ने CJI गवई की हिंदू देवता पर टिप्पणी से नाराज होकर सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट हॉल नंबर 1 में जूता फेंक दिया था। इस घटना ने पूरे देश में आक्रोश पैदा कर दिया, और अटॉर्नी जनरल ने कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट की कार्रवाई के लिए सहमति दे दी है। समिति ने राष्ट्रपति से अपील की कि इस तरह के कृत्यों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं, ताकि सर्वोच्च न्यायिक संस्था की पवित्रता बनी रहे। समिति अध्यक्ष अचलेश्वर राणा ने कहा, "यह घटना न केवल CJI गवई पर अपमान है, बल्कि पूरे संविधान और लोकतंत्र पर चोट है। हम न्यायपालिका की स्वतंत्रता में अटूट विश्वास रखते हैं और ऐसी घटनाओं का कड़ा विरोध करते हैं।" उन्होंने जोर देकर कहा कि बार काउंसिल ने आरोपी वकील का लाइसेंस निलंबित कर दिया है, लेकिन देश को ऐसी घटनाओं से सावधान रहना होगा।
सोनम वांगचुक की हिरासत पर सदमा: 'राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक को NSA क्यों?'
ज्ञापन का दूसरा प्रमुख मुद्दा लेह-लद्दाख (केंद्र शासित प्रदेश) में स्वायत्त लोकतांत्रिक व्यवस्था बहाल करने के अहिंसक जनआंदोलन से जुड़ा है। समिति ने मांग की कि राष्ट्रपति आंदोलन के प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के बीच संवाद का मार्ग प्रशस्त करें। विशेष रूप से, पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की 26 सितंबर को NSA के तहत हिरासत को अनुचित बताते हुए उनकी तत्काल रिहाई की अपील की गई। वांगचुक, जो हिमालय क्षेत्र के पर्यावरण संरक्षण, युवाओं के शिक्षा और सीमा पर तैनात सैनिकों के कल्याण के लिए समर्पित हैं, को लेह प्रशासन ने "राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा" बताकर गिरफ्तार किया। सुप्रीम कोर्ट में उनकी पत्नी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई 29 अक्टूबर को निर्धारित है, जहां केंद्र सरकार ने उन्हें अपनी पत्नी के वकील के साथ नोट्स साझा करने की अनुमति दी है। समिति ने कहा, "वांगचुक जैसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित व्यक्ति की हिरासत से लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले लोगों को गहरा आघात पहुंचा है। बहुजन समाज राष्ट्रपति के संरक्षण में है और शांति बहाली व लोकतांत्रिक व्यवस्था मजबूत करने के लिए संवाद चाहता है।" संरक्षक सुरेश अंबेडकर ने जोड़ा, "वांगचुक की रिहाई से न केवल लेह-लद्दाख में शांति लौटेगी, बल्कि प्रकृति संरक्षण और मानवीय गरिमा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता भी मजबूत होगी।"
ज्ञापन सौंपने में सक्रिय सदस्य: एकजुटता का संदेश
ज्ञापन सौंपने के अवसर पर समिति के प्रमुख सदस्य उपस्थित रहे, जिनमें अध्यक्ष अचलेश्वर राणा, संरक्षक सुरेश अंबेडकर, उपाध्यक्ष सुरेश कुमार जोड़ा, चूनाराम सोलंकी, फतेहराज गोयल, भैराराम, मदन सेन, खुशाल हंस आदि शामिल थे। उपखंड अधिकारी ने ज्ञापन ग्रहण कर उच्च अधिकारियों तक पहुंचाने का आश्वासन दिया। यह ज्ञापन आहोर क्षेत्र में सामाजिक जागरूकता का प्रतीक बन गया है। समिति ने कहा कि डॉ. अंबेडकर के सिद्धांतों पर आधारित यह संघर्ष संविधान की रक्षा के लिए जारी रहेगा। स्थानीय लोगों ने इस पहल का स्वागत किया और उम्मीद जताई कि राष्ट्रपति स्तर पर हस्तक्षेप से दोनों मुद्दों का समाधान निकलेगा। यह घटना राजस्थान के आहोर जैसे छोटे शहरों से राष्ट्रीय मुद्दों पर सक्रिय भागीदारी को दर्शाती है।