एक आईना भारत
प्रविणसिहं राजपुरोहित
कोरना । बाड़मेर जिले के पादरू कस्बे का रहने वाला नर्सिंग ऑफिसर पूनम बिशनोई हैं जो कि वर्तमान समय में नर्सिंग ऑफ़िसर के पद पर कार्यरत हैं ,दिल्ली में कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ों की देखभाल मे जुटे हुये है। वर्तमान मे ESIC दिल्ली NCR में पोस्टेड है। हम मरीज़ों को दवाई देने के अलावा भी उनका हौसला आफ़ज़ाई और मनोरंजन करके भी उनको डिप्रेशन में जाने से बचाने का भी काम कर रहे है। साथ ही उन्होंने कहा कि सभी से कहना चाहूँगा की परेशान ना होकर घर मैं बड़े बुजुर्गों के साथ समय व्यतित करें, और जिस किसी मित्र की कोई भी नशा करने की आदत है,तो उसको त्यागने का यह सबसे उपयुक्त समय है। आने वाले समय के संदर्भ मैं कहना चाहूँगा महान् दार्शनिक डॉ. राधाकृष्णन की इन पंक्तियों का स्मरण हो आया- ‘हमने पक्षियों की तरह उड़ना और मछलियों की तरह तैरना तो सीख लिया है।किन्तु मनुष्य की तरह पृथ्वी पर चलना एवं जीना नहीं सीखा है।’ लेकिन इस भीड़ में कुछ-एक होते हैं जो रंग नहीं बदलते उन्हें खोजना मुश्किल भी है तो बहुत आसान भी, जो आदमी होते हैं। पता नहीं कब हम उनसे रू-ब-रू हो जाएं। सिर्फ समझ का दरवाजा खोलने की जरूरत है। अगर समझपूर्वक जीना आ गया तो जीवन के प्रत्येक धरातल पर इंसान की इंसान से मुलाकात होने लगेगी और बड़े-से-बड़े संकटों से मुक्ति के रास्ते भी उद्घाटित होंगे।आनंद का दरिया लहराने लगेगा। जिंदगी का हर एक लम्हा नया अंदाज देकर जाएगा।
प्रविणसिहं राजपुरोहित
कोरना । बाड़मेर जिले के पादरू कस्बे का रहने वाला नर्सिंग ऑफिसर पूनम बिशनोई हैं जो कि वर्तमान समय में नर्सिंग ऑफ़िसर के पद पर कार्यरत हैं ,दिल्ली में कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ों की देखभाल मे जुटे हुये है। वर्तमान मे ESIC दिल्ली NCR में पोस्टेड है। हम मरीज़ों को दवाई देने के अलावा भी उनका हौसला आफ़ज़ाई और मनोरंजन करके भी उनको डिप्रेशन में जाने से बचाने का भी काम कर रहे है। साथ ही उन्होंने कहा कि सभी से कहना चाहूँगा की परेशान ना होकर घर मैं बड़े बुजुर्गों के साथ समय व्यतित करें, और जिस किसी मित्र की कोई भी नशा करने की आदत है,तो उसको त्यागने का यह सबसे उपयुक्त समय है। आने वाले समय के संदर्भ मैं कहना चाहूँगा महान् दार्शनिक डॉ. राधाकृष्णन की इन पंक्तियों का स्मरण हो आया- ‘हमने पक्षियों की तरह उड़ना और मछलियों की तरह तैरना तो सीख लिया है।किन्तु मनुष्य की तरह पृथ्वी पर चलना एवं जीना नहीं सीखा है।’ लेकिन इस भीड़ में कुछ-एक होते हैं जो रंग नहीं बदलते उन्हें खोजना मुश्किल भी है तो बहुत आसान भी, जो आदमी होते हैं। पता नहीं कब हम उनसे रू-ब-रू हो जाएं। सिर्फ समझ का दरवाजा खोलने की जरूरत है। अगर समझपूर्वक जीना आ गया तो जीवन के प्रत्येक धरातल पर इंसान की इंसान से मुलाकात होने लगेगी और बड़े-से-बड़े संकटों से मुक्ति के रास्ते भी उद्घाटित होंगे।आनंद का दरिया लहराने लगेगा। जिंदगी का हर एक लम्हा नया अंदाज देकर जाएगा।
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